गुरुवार, 21 अगस्त 2014

ओमप्रकाश वाल्मीकि के पत्र- 41
                                      (पोस्ट कार्ड)   
                                                                                                                        

जबलपुर
19-3-2001


आदरणीय भाई,
आपके द्वारा प्रेषित पुस्तक ‘रैदास : एक विश्लेषण’ प्राप्त हुई. पुस्तक में स्थापित विचार एक नयी चिंतनधारा के रूप में मान्य होगा. बधाई.
‘तीसरा पक्ष’ का ताज़ा अंक मिला होगा. अपनी राय से अवगत करें. शिवकुमार मिश्र जी के लेख पर टिप्पणी भेजें, ताकि बहस आगे बढ़े.
‘सलाम’ की समीक्षा कहाँ भेजी थी? कब तक आ रही है? ‘दलित साहित्य का सौन्दर्य-शास्त्र’ पुस्तक भी जल्दी ही आ रही है.
देवेश चौधरी जी ने आपके बताये पते पर ‘तीसरा पक्ष’ की पचास प्रतियाँ भेजी थी. लेकिन इन प्रतियों के बारे में कोई पत्र नहीं मिला. बरेली के इस साथी से कहकर पैसे भिजवायें, ताकि अगले अंक में काम आ जायें. ‘माझी जनता’ की स्थिति से भी अवगत करें.
शेष शुभ. दिल्ली में साहित्य कम राजनीति ज्यादा हो रही है. पत्र दें.

ह० (ओमप्रकाश वाल्मीकि)





ओमप्रकाश वाल्मीकि के पत्र- 42
                                      (पोस्ट कार्ड)

जबलपुर
6-7-2001

आदरणीय भाई श्री कँवल भारती जी,
समीक्षा मिली. संक्षिप्त (कर) ‘संबोधन’ को भेज दी है. लेकिन काफी विलम्ब हो गया था. हो सकता है सामग्री प्रेस में चली गयी हो. सम्पादक श्री कमर मेवाड़ी का पत्र आने पर स्थिति का पता चलेगा. खैर, प्रतीक्षा है फ़िलहाल तो.
असंग घोष जी का कविता-संग्रह आ गया है. प्रति आपको पहुँच गयी होगी. विमोचन के लिए ज्ञानरंजन जी को बुलाया था. अच्छा कार्यक्रम रहा. चर्चा भी अच्छी रही. जबलपुर में माहौल बन रहा है.
‘जूठन’ के अंग्रेजी संस्करण की तैयारियां चल रही हैं. जनवरी 2002 तक आ जाने की उम्मीद है.
शेष कुशल. दिल्ली के ताज़ा चर्चे क्या हैं? ‘वर्तमान साहित्य’ के प्रत्येक अंक में लेख छप रहे हैं दलित विमर्श पर. सम्पर्क बनाये रखें.
आदर सहित,
आपका,
ह० (ओमप्रकाश वाल्मीकि)
                                          




ओमप्रकाश वाल्मीकि के पत्र- 43
                                      (पोस्ट कार्ड)


जबलपुर
26-११-2001

आदरणीय भाई श्री कँवल भारती जी,
लखनऊ में आपका साथ प्रेरणादायक रहा. आप तो रात ही में चले गये थे. अगले दिन काफी व्यस्तता रही.
‘दलित साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र’ पुस्तक पढ़ चुके होंगे. आपकी टिप्पणी एवं समीक्षा की प्रतीक्षा तो रहेगी ही.
6 दिसम्बर का कार्यक्रम तो होगा, लेकिन कुछ आगे बढ़ाकर. तारीख तय नहीं हो पा रही है. एक-दो दिन में तय हो जाने की सम्भावना है. नया अंक (तीसरा पक्ष का) आ गया है. जल्दी ही आपको मिल जायेगा. अंक में थोडा विलम्ब हुआ है. प्रेस में कुछ समस्याएं थीं.
शेष कुशल. सानन्द होंगे.
आपका,
ह० (ओमप्रकाश वाल्मीकि)
ओमप्रकाश वाल्मीकि के पत्र- 44
                                      (पोस्ट कार्ड)


देहरादून
24-12-02

आदरणीय भाई श्री कँवल भारती जी,
नये वर्ष के शुभ आगमन पर हार्दिक अभिनन्दन स्वीकारें.
स्वस्थ व सानन्द होंगे.
आपकी सक्रियता हौसला देती है.

ह० (ओमप्रकाश वाल्मीकि)




ओमप्रकाश वाल्मीकि के पत्र- 45
                                      (पोस्ट कार्ड)

सी- 5/२, आर्डनेंस फैक्ट्री इस्टेट,
देहरादून
18-4-03

आदरणीय भाई श्री कँवल भारती जी,
आशा है, सानंद होंगे. ‘कौशाम्बी महोत्सव’ में आपसे मुलाकात होगी, यह सोचकर उसमें शामिल हुआ था. लेकिन वहां आप नहीं थे. कमी खली. डा. बेचैन, डा. तेज सिंह, डा. विमल थोरात, रमणिका गुप्ता, मुद्रा राक्षस आदि थे. कार्यक्रम तो ठीक ही रहा.
‘जनसत्ता’ (6-4-03) के रविवारीय परिशिष्ट में राजस्थान के श्री रत्नकुमार सांभरिया ने दलित को लेकर फिर से अपनी संकीर्णता का इज़हार किया है. इससे पूर्व भी यह महाशय इसी तरह का कार्य करते रहे हैं. मुख्यरूप से श्री नैमिशराय और मुझे ही निशाना बनाया है. लेख आपने देखा होगा. ‘जनसत्ता’ का यह कार्य भी संदेह के घेरे में आता है, जो उन्होंने इतना घटिया लेख छापा है. जो आरोप लगाये हैं, वे तथ्यहीन और गैर-जिम्मेदाराना ढंग से रखे गये हैं, जिसका सीधा अर्थ यह निकलता है कि दलित साहित्य मात्र चमारों और भंगियों की आपसी प्रतिद्वंदिता है, जिसमें एक-दूसरे पर कीचड़ उछाला जा रहा है. आप इस लेख को पढ़कर अपनी राय से अवगत करें. साथ ही यदि संभव हो तो ‘जनसत्ता’ को भी एक तीखा सा उत्तर दें.
‘जूठन’ का अंग्रेजी संस्करण आ गया है. शेष शुभ. पत्र दें.
आदर सहित आपका,
ह० (ओमप्रकाश वाल्मीकि)
ओमप्रकाश वाल्मीकि के पत्र- 46
                                      (पोस्ट कार्ड)


सी- 5/२, आर्डनेंस फैक्ट्री इस्टेट,
देहरादून
24-4-06

सम्मानीय कँवल भारती जी,
आपकी सद्यः प्रकाशित पुस्तक (दलित निर्वाचित कविताएँ) प्राप्त हुई. एक जरूरी पुस्तक के प्रकाशन पर बधाई स्वीकारें. सचमुच आपने विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण कार्य किया है. जो इस समय बहुत ही सार्थक कहा जायेगा. कविताओं के चयन में आपकी दृष्टि की झलक मिलती है. भूमिका भी आपने अच्छी लिखी है. हिन्दी कविता के संदर्भ में आपने हीरा डोम, अछूतानन्द आदि की चर्चा करके भी एक विशिष्ट काम किया है. लेकिन समकालीन हिन्दी दलित कविता या चयनित कविताओं पर भी यदि आप कोई टिप्पणी करते, तो पुस्तक की गुणवत्ता में और इजाफा ही होता. मराठी, गुजराती कविताओं पर आपकी टिप्पणी जिस तरह आयी है, यदि उसी तरह हिन्दी कविता पर भी होती तो शायद बेहतर होता. फिर भी आपका यह कार्य बहुत उत्तम और सार्थक हुआ है, इसमें कोई दो राय नहीं होगी. मेरी हार्दिक बधाई. आपके इस कार्य से मेरी इस मान्यता को भी बल मिला है कि दलित साहित्य में महत्वपूर्ण काम दिल्ली से बाहर हो रहा है, जो अपने आप में कीर्तिमान बनेगा. फिर से एक बार आपको बधाई.
आशा है, सानंद होंगे. शिव बाबू मिश्र, कानपुर की पुस्तक ‘जूठन : एक विमर्श’ मिली होगी.
आपका,
ह० (ओमप्रकाश वाल्मीकि)
फोन – 09412319034










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