मंगलवार, 19 अगस्त 2014

ओमप्रकाश वाल्मीकि के पत्र—26
(पोस्ट कार्ड)

देहरादून
10-7-96

प्रिय भाई श्री कँवल भारती जी,
आपका पत्र दिनांक 5-7-96 मिला. ‘अम्मा’ कहानी पर आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी एक संवाद को अंकुरित कर रही है. समाज में जो बदलाव आया है, उसके समूचे परिदृश्य को इस कहानी में भले ही अभिव्यक्ति न मिली हो, किन्तु एक पक्ष तो अवश्य उभरा है. वह पीढ़ी जो पारम्परिक कार्य छोड़ कर कार्यालयों या अन्य कार्यों तक पहुंचे, बदलाव की पहली पीढ़ी कहे जा सकते हैं. जहाँ तक आशावादी होने का सवाल है, ‘अम्मा’ की पीड़ा भी तो यही है कि उसकी संतति एक अनुकरणीय समाज की ओर नहीं बढ़ी. मात्र बाह्य परिवर्तन तक या सुविधाभोगी बन जाने का रास्ता अपनाया.
आपने बेबाक ढंग से अपनी बात कही, अच्छा लगा. अपनी कमजोरियों को समझने में इससे मदद मिलती है. दलित रचनाओं पर जितनी ज्यादा बातचीत होगी, रचनाधर्मिता के उतने (ही) सूक्ष्म आयाम परिभाषित होंगे. इसी दृष्टि को मद्देनजर रखते हुए, ‘अंधड़’ कहानी लिखी है, जो अगस्त 96 के ‘हंस’ में आ रही है. आशा है, इस कहानी पर आपकी प्रतिक्रिया मुझे मिलेगी. यह एकदम ताज़ा कहानी है. जून 96 में लिखी थी.
बस, शेष कुशल. सानन्द होंगे. भाभी कैसी हैं? ‘कविता-संग्रह’ की क्या प्रगति है? पत्र देते रहें.
आपका,
ह० (ओमप्रकाश वाल्मीकि)
ओमप्रकाश वाल्मीकि के पत्र—27
(पोस्ट कार्ड)

देहरादून
15-7-96

प्रिय भाई श्री कँवल भारती जी,
‘तब तुम्हारी निष्ठा क्या होती?’ कविता-संकलन की प्रतियाँ मिलीं. आभार.
कविता-संग्रह छपने पर हार्दिक बधाई. दलित-चेतना के विस्तार एवं उसे प्रगल्भता प्रदान करने में यह संग्रह अपनी विशिष्ट एवं सार्थक भूमिका निभायेगा.
प्रतियाँ निकलते ही आपको राशि भेज दी जायेगी. आज ही रजत रानी की पुस्तक ‘नवें दशक की हिंदी दलित कविता’ प्राप्त हुई है. ऐसी पुस्तकों की इस वक्त सचमुच आवश्यकता है. मेरे विचार से आलोचनात्मक यह पहली पुस्तक है.
वीर भारत तलवार शिमला में दलित साहित्य को लेकर एक सेमिनार करना चाहते हैं. शायद वे आपसे संपर्क करें. उन्होंने कुछ सूचनाएँ मांगी थीं. वे मैंने भेज दी हैं. मेरे साथ कुछ ऐसी समस्याएं जुड़ गयी हैं कि मेरा बाहर निकलना कठिन होने लगा है.
बस, शेष कुशल. सानन्द होंगे. शुभकामनाओं सहित,
आपका,
ह० (ओमप्रकाश वाल्मीकि)




ओमप्रकाश वाल्मीकि के पत्र—28

कलालों वाली गली,
देहरादून
दिनांकः 31 अगस्त 1996


प्रिय भाई कँवल भारती जी,

आपका आलेख मिला. ‘दलित साहित्य और प्रेमचंद’ शीर्षक इस आलेख में जहाँ आपने दलित साहित्य की अंतर्धारा का विवेचन किया है, वहीँ प्रेमचन्द की विशिष्ट कहानियों—‘कफन’, ‘ठाकुर का कुआँ’, ‘मुक्ति मार्ग’, ‘सद्गति’, ‘मंदिर’ एवं उपन्यास ‘रंगभूमि’ पर भी गहरी छानबीन की है. आलेख कई प्रकार के सवालों को खड़ा करता है, जिनके उत्तर हिंदी आलोचकों को देने हैं. आपने काफी श्रम किया है. बधाई.
कार्यक्रम कैसा रहा? जानने की उत्सुकता है. कौन-कौन लेखक आये थे? चर्चा कैसी रही? विस्तार से जानकारी मिले तो अच्छा होगा.
रजत जी का पत्र आया था, ‘अम्मा’ कहानी पर आपकी टिप्पणी को लेकर उन्होंने लिखा है. मैंने उन्हें लिख दिया है कि कँवल भारती जी के नजरिये पर बहस की गुंजाईश है. यदि उन्हें ‘अम्मा’ का पात्र प्रेरणादायी नहीं लग रहा है, तो क्यों? शायद चर्चा से कुछ नये विचार सामने आयें, जो हमारे लेखन को नयापन देंगे. आपने ‘अम्मा’ को ‘भावाधस’ के किसी अखबार (शायद ‘आदि सत्य’) के 14-21 जुलाई के अंक में भी छापा था. पाठकों की प्रतिक्रिया यदि ‘अम्मा’ पर आई हो तो, अवगत करें.
अंधड़’ देख ली होगी ‘हंस’ में. आपकी राय जानने की उत्सुकता है.
‘बस्स ! बहुत हो चुका’ (कविता-संग्रह) वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली से तथा ‘जूठन’ (आत्मकथा) राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली से, अक्टूबर तक छपकर आ जायेंगे, ऐसी उम्मीद है.
बस, शेष लुश्ल. आपकी पुस्तक की सहयोग राशि शीघ्र ही भेजूंगा.
सानन्द होंगे. आपके पत्र की प्रतीक्षा है.
आपका,
ह० (ओमप्रकाश वाल्मीकि)



ओमप्रकाश वाल्मीकि के पत्र—29
(पोस्ट कार्ड)

देहरादून
30-11-96

प्रिय भाई श्री कँवल भारती जी,
आपके आलेख ‘क्या निराला प्रगतिवादी थे?’ की प्रति मिली. नि:संदेह एक गंभीर आलेख है, जो हिंदी समीक्षकों के मानदंडों को धराशायी करता है. दलित-साहित्य में वर्णव्यवस्था के लिए कोई स्थान नहीं है. वर्णव्यवस्था का समर्थक दलितों की पीड़ा को नहीं समझ सकता. निराला भी अपवाद नहीं हैं.
मुजफ्फरनगर एक कार्यक्रम में गया था. दलित-साहित्य की अवधारणाओं पर चर्चा हुई. रपट शीघ्र भेजूंगा.
इलाहबाद कार्यक्रम की विस्तृत रपट हो तो भेजें. क्या लिम्बाले जी आये थे?
मेरी कहानियों पर आपका आलेख ‘पूर्वदेवा’ के जुलाई-सित. ’96 अंक में छपा है. यदि प्रति न हो तो लिखें. फोटो प्रति मैं भेज दूंगा.
डा. एन. सिंह द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘दलित-साहित्य चिंतन के विविध आयाम’ में आपका लेख है- ‘दलित कविता का अर्थ’. बधाई. पुस्तक मिल गयी होगी.
बस, शेष कुशल. सानन्द होंगे. शुभकामनाओं सहित,
आपका,
ह० (ओमप्रकाश वाल्मीकि)



ओमप्रकाश वाल्मीकि के पत्र—30
(पोस्ट कार्ड)

देहरादून
11-12-96

प्रिय भाई श्री कँवल भारती जी,
आपका पत्र दिनांक 4-12-96 मिला. आभार.
‘कांशीराम के दो चेहरे’ पुस्तक मुझे नहीं मिली. हाँ, गत दिनों डा. श्यौराजसिंह बेचैन यहाँ आये थे, तो उन्होंने पुस्तक का जिक्र किया था. ‘डा. आंबेडकर : एक पुनर्मूल्यांकन’ की प्रतीक्षा रहेगी.
आप कार्यक्रम की रूपरेखा बनाइए. मैं पूरी कोशिश करूँगा इसमें सहभागी होने की. यह अलग बात है, कई बार चाह कर भी कई कार्य(क्रम) छूट जाते हैं.
कार्यक्रम दिल्ली में भी रखा जा सकता है. एक कर्यक्रम की रूपरेखा मुजफ्फरनगर में भी बन रही है. गत दिनों मैं वहां ‘वाणी’ संस्था के निमंत्रण पर गया था. कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार होते ही मैं आपको लिखूंगा.
गत माह कुछ घंटों के लिए मैं दिल्ली गया था. रात में ही वापस लौट आया था. राजेन्द्र यादव जी से चर्चा हुई थी. दलित-साहित्य की गतिविधियों से साहित्यिक हलकों में बौखलाहट है. शायद ‘हंस’ के सम्पादकीय में कुछ जिक्र आये.
बस, शेष कुशल. सानन्द होंगे. पत्नी के स्वास्थ्य ने अस्त-व्यस्त कर रखा है. पत्र देते रहें.
आपका,
ह० (ओमप्रकाश वाल्मीकि)












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