शनिवार, 1 जून 2013

हिन्दी के फासिस्ट चिंतक और स्त्री-विरोधी दलित लेखक धर्मवीर के एक शिष्य रवीन्द्र प्रताप सिंह ने मुझे स्पीड पोस्ट से पत्र भेज कर आरोप लगाया है कि मैंने फेसबुक पर अपनी कबीर और डा. आंबेडकर संबंधी टिप्पणी में धर्मवीर की नकल की है. पत्र की ड्राफ्टिंग धर्मवीर की ही है, यह भी मैं जानता हूँ, क्योंकि जब मैंने उनके स्त्री-विरोध पर उन्हें मानसिक विक्षिप्त कहा था, तब उनके अनेक पत्र मेरे पास इसी शैली में आये थे. धर्मवीर को यह अहंकार हो गया है कि उनसे बड़ा कोई मौलिक चिंतक ही नहीं है. वह इस अवैज्ञानिक धारणा को दिमाग में भरे बैठे हैं कि दो लेखक एक जैसा नहीं सोच सकते. जबकि हिन्दी साहित्य से ही नहीं, पूरे विश्व साहित्य से इस तरह के एक-दो नहीं, सैकड़ों उदाहरण दिए जा सकते हैं.
मैं सीधे धर्मवीर की मौलिकता पर आता हूँ, जिसका वे डंका पीटते हैं और जिसके कुछ कमजोर दिमाग वाले उनके चेले भी अनुयायी हैं. वह यह डंका पीटते और पिटवाते हैं कि सर्व प्रथम यह उनका ही मौलिक चिंतन है कि रामानंद कबीर के गुरु नहीं थे. वह चाहते हैं कि लोग इसे उन्हीं की खोज मानें. उनके चेले मान भी रहे हैं, कुछ और लोग भी मान रहे हैं; पर मैं नहीं मानता. मैंने इसका जिक्र अपनी किताब “कबीर का ज्ञानोदय” में किया भी है. कबीर पर धर्मवीर की पहली किताब का नाम है, “कबीर के आलोचक”, जिसका पहला संस्करण 1997 में आया था. इसी किताब में उन्होंने रामानंद को कबीर का गुरु माने जाने का खंडन किया है. इसका मतलब है कि धर्मवीर की यह तथाकथित मौलिक खोज कुल 16 साल पुरानी है. हो सकता है कि एक-दो साल पहले कुछ और जगह भी उन्होंने यह “खोज” कहीं लिखी हो. कुल मिला कर मैं उनकी इस “मौलिक खोज” को बीस साल पुरानी मान लेता हूँ.
अब मैं आपको बताता हूँ कि धर्मवीर की यह खोज हरगिज मौलिक नहीं है. दलित साहित्य में सर्व प्रथम 1960 में चन्द्रिका प्रसाद जिज्ञासु ने रैदास को रामानंद का शिष्य माने जाने वाली किंवदंती का खंडन किया था. इसमें कबीर आसानी से शामिल किये ही जा सकते हैं. हिन्दी साहित्य में सर्व प्रथम 1940 में डा. राकेश गुप्त ने इस किंवदंती का खंडन किया था कि रामानंद कबीर के गुरु थे. उनका यह लेख “क्या कबीर रामानंद के शिष्य थे” शीर्षक से 1940 में ‘सम्मलेन पत्रिका’ में छपा था. तब कौन मौलिक हुआ? 1997 के धर्मवीर या 1940 के डा. राकेश गुप्त? अत: कहना ना होगा कि धर्मवीर ने अपनी अवधारणा को चंद्रिकाप्रसाद जिज्ञासु और डा. राकेश गुप्त के लेखन से चुराया है. यही नहीं, राकेश गुप्त की शैली का भी पूरा प्रभाव धर्मवीर के कबीर-लेखन पर है. मैं धर्मवीर की और स्थापनाओं पर भी खोज-खबर दे सकता हूँ. पर, फ़िलहाल इतना ही.

01 जून 2013

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