Dr. Ambedkar On Hindu-Unity
(कँवल भारती)
फेसबुक पर कुछ
दलित-बौद्ध मित्र डा. आंबेडकर को लेकर बहुत ही बचकानी हरकतें कर रहे हैं. डा.
आंबेडकर को पढ़ने के नाम पर वे जीरो हैं, पर उनके बारे में दावा इस तरह करेंगे,
जैसे वे सब कुछ जानते हैं और वे ही सबसे बड़े ‘आंबेडकर-ज्ञानी’ हैं. अब कल ही बात
है कि एक सज्जन ने, जो अपने नाम के आगे ‘बौद्ध’ लगाते हैं, अंग्रेजी में एक कुटेशन
(कुछ पंक्तियाँ) लिख कर यह पूछा कि ये पंक्तियाँ आंबेडकर की बताई जाती हैं, क्या
कोई बताएगा कि ये पंक्तियाँ आंबेडकर की ही हैं? वह कुटेशन यह था—
“If we achieve success in our movement to
unite all the hindus in a single caste we shall have rendered the greatest
service to the Indian nation in general and to the Hindu community in
particular.”
मैंने इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद उनकी
पोस्ट पर लिखा कि ये पंक्तियाँ डा. आंबेडकर की ही हैं. इस पर एक दूसरे
“आंबेडकर-ज्ञानी” ने लिखा कि “मैं नहीं मानता.” मैंने कहा कि मैं उस किताब का नाम
बता रहा हूँ, जिसमे ये पंक्तियाँ दर्ज हैं. यह किताब है—“Source Material On Dr.
Babasaheb Ambedkar And The Movement Of Untouchables.” (Vol. 1, page 16) इस पर
उसने पूछा—‘यह किसकी लिखी हुई है?’ मैंने जवाब दिया कि इसे किसी ने नहीं लिखा है.
इसमें डा. आंबेडकर के वे बयान और भाषण संकलित हैं, जो उस समय के अख़बारों में छपे
थे. इस किताब का प्रकाशन महाराष्ट्र सरकार ने किया है, और इसका संपादन-बोर्ड में वसंत
मून जैसे आंबेडकर-विद्वान हैं. इस पर उन्हीं ‘पोस्ट लिखने वाले बौद्ध जी’ ने
टिप्पणी की—“डा. आंबेडकर ने हिन्दू यूनिटी की कभी बात नहीं की.” इस पर गुस्सा आना
स्वाभाविक था. मैंने कहा-- ‘क्या पैमाना है आपके पास आंबेडकर को मापने का?’
इसका
जवाब नहीं आया, और बाद में वो पोस्ट ही बंद हो गयी. दरअसल इन लोगों की समस्या यह
है कि इनके दिमागों में यह बैठ गया है कि डा. आंबेडकर हिन्दू-विरोधी थे. यह समझ
उनकी इसलिए बनी है, क्योंकि उन्होंने डा. आंबेडकर के दलित आन्दोलन के क्रमिक विकास
को न जाना है और न समझा है. इसलिए वे शायद यह समझते हैं कि डा. आंबेडकर जन्म से ही
हिन्दू-विरोधी थे और अन्त तक रहे. अगर उनसे यह कहा जाये कि अक्टूबर 1956 से पहले
तो डा. आंबेडकर हिन्दू ही थे, तो फिर वे हिन्दू-एकता की बात क्यों नहीं कर सकते
थे? उपर्युक्त पंक्तियाँ डा. आंबेडकर के
उस भाषण से ली गयीं हैं, जो उन्होंने महाद-सत्याग्रह के समय दिया था. यह भाषण डा.
आंबेडकर ने 25 दिसम्बर 1927 को महाद-सम्मेलन में दिया था, जो ‘The Indian National
Herald’ के 28 दिसम्बर 1928 के अंक में छपा था. इसी भाषण में उन्होंने
महाद-सत्याग्रह की तुलना फ़्रांस की 1789 की राज्य-क्रान्ति से की थी. इसी भाषण में
उन्होंने जाति-विहीन समाज के निर्माण के लिए दलितों के संघर्ष को राष्ट्र की सच्ची
सेवा बताया था. उनके भाषण का वह पूरा पैरा, जिससे उपर्युक्त पंक्तियाँ ली गयी हैं,
यह है---
“Ours is a movement which aims at not only
removing our own disabilities, but also at bringing about a social revolution, a
revolution that will remove all man-made barriers of caste by providing equal
opportunities to all to rise to the highest position and making no distinction
between man and man so far as civic rights are concerned. If we achieve
success in our movement to unite all the hindus in a single caste we shall have
rendered the greatest service to the Indian nation in general and to the Hindu
community in particular. The present caste-system with its invidious
distinctions and unjust dispensations is one of the greatest sources of our
communal and, National weakness. Our movement stands for strength and
solidarity; for equality, liberty and fraternity. ...We refuse to be controlled
and bound by the ‘Shastras’ and ‘Smrities’ composed in the Dark ages and base
our claims on justice and humanity.” (Source Matrial On
Dr. Babasaheb Ambedkar And The Movement Of Untouchables.” (Vol. 1, page 16)
डा. आंबेडकर का यह
भाषण महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित ‘Dr. Babasaheb Ambedkar Writings And
Speeches, के Vol. 17 (part one) में भी पृष्ठ 24 पर देखा जा सकता है.
04 जून 2013
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