कृष्ण का ‘उतार’
(कँवल भारती)
बौद्ध विद्वान मोतीराम शास्त्री की दिलचस्प खोजों में एक
खोज कृष्ण के सम्बन्ध में है, यह मैं बता चुका हूँ. कई मित्रों ने उसे भी जानना
चाहा है. पर, इसके लिए हजरत मूसा के जीवन को पहले जानना होगा. कृष्ण के
जीवन-चरित्र को लगभग हम सभी लोग जानते हैं. लेकिन हजरत मूसा के बारे में ऐसा शायद
नहीं कहा जा सकता. अलबत्ता, मुसलमान भाइयों की जानकारी इस सम्बन्ध में ज्यादा है.
अत: यह जानने से पहले कि कृष्ण मूसा का ‘उतार’ किस तरह हैं, हजरत मूसा के जीवन से
परिचित होना जरूरी है. कुरान में हजरत मूसा के बारे में बहुत सी सूराओं में जिक्र
आया है, पर विस्तार से वर्णन सूरा ‘क़सस’ में आया है. मैंने यहाँ उसी को अपना आधार
बनाया है. यहूदियों में फिरऔन के अत्याचार बढ़ गये थे. उसे अपनी हत्या का डर था,
इसलिए वह अपने समुदाय के बेटों को कत्ल कर देता था और औरतों को जीवित रहने देता
था. जब मूसा पैदा हुए तो इस डर से कि फिरऔन उसे कत्ल न कर दे, उनकी माँ ने मूसा को
एक बॉक्स में बंद करके नदी में बहा दिया. उस बॉक्स को फिरऔन के ही घर के किसी आदमी ने निकाल लिया और वह उसे घर ले गया. जब फिरऔन
ने उसे भी कत्ल करने का हुक्म दिया, तो उसकी स्त्री ने कहा कि इसे कत्ल मत करो, यह
हमारी आँखों की ठंडक बनेगा. और इस तरह फिरऔन को मार कर अपने समुदाय को उसके
अत्याचारों से मुक्त करने वाले मूसा फिरऔन के ही घर में पले. इस तरह मूसा की भी दो
माँ हुईं. बड़े होकर मूसा एक लाठी (असा) रखते थे, जिसकी शक्ल सर्प जैसी थी. मूसा का
छोटा भाई हारुन था. एक दिन मूसा ने फिरऔन के एक आदमी को मार दिया और इसी बीच फिरऔन
को पता चल गया कि यह मूसा ही उसे मारने वाला है. तब फिरऔन ने मूसा के कत्ल की
योजना बनाई, पर मूसा वहाँ से पलायन कर गये. बाद में मूसा ने फिरऔन को समुद्र में
डुबो कर मारा.
मोतीराम शास्त्री कहते हैं कि कृष्ण की
जीवनी में भी यही समान घटनाएँ हैं. यहाँ फिरऔन की जगह कंस है, यहाँ कंस को
भविष्यवाणी होती है कि उसकी बहन का आठवां पुत्र उसकी हत्या करेगा. कंस बहन के छह
पुत्र मार देता है. पर आठवें पुत्र कृष्ण को उसके पिता जन्म के तुरंत बाद टोकरी
में छिपा कर रातोंरात यमुना नदी पार करके कंस की सीमा से दूर सुरक्षित जगह वृन्दावन
में यशोदा के पास पहुंचा देते हैं. इस तरह कृष्ण की भी दो माँ होती हैं. बड़े होकर
कृष्ण अपने पास बांसरी रखते हैं. अन्त में कृष्ण कंस का वध करके गोकुलवासियों को
उसके अत्याचार से मुक्त करते हैं.
इस ‘उतार’ प्रसंग में भी बहस की खूब गुजाइश
है. अभी एक किताब मैंने भागीरथ मेघवाल की पढ़ी है, जिसका नाम ‘असुर लोक नायक कृष्ण’
है. उनके अनुसार कृष्ण की बाल्य काल की कथा को बौद्ध ग्रन्थ ‘महावंस’ में आयी
‘पाण्डुकाभय’ की कथा से लिया गया है. उनके कथन के अनुसार, कृष्ण और ‘पाण्डुकाभय’ दोनों
ही ग्वालों के घर में पले हैं. शिशु को ले जाते समय मार्ग में नदी पड़ने के प्रसंग,
कंस को मारने के प्रसंग मिलते जुलते हैं. मामाओं को मारने तक के प्रसंगों में
एकरूपता है. बाद के प्रसंगों में यह एकरूपता समाप्त हो जाती है. ‘पाण्डुकाभय’ राजा
हो जाता है, कृष्ण राजा नहीं बनते.
क्या संयोग है कि मूसा भी राजा नहीं बनते
हैं, वे धर्मोपदेशक बनते हैं, उसी तरह कृष्ण भी. कुछ भी हो, कृष्ण का हिन्दू समाज
में जो व्यापक सम्मान और प्रभाव है, उसे खत्म नहीं किया जा सकता. कृष्ण की गणना
विश्व की उन पांच महान विभूतियों में की जाती है, जिन्होंने मानव जाति को प्रभावित
किया. ये पांच विभूतियाँ हैं—(1) बुद्ध, (2) ईसा, (3) कृष्ण, (4) मुहम्मद और (5)
कार्लमार्क्स. (इस श्रेणी में राम नहीं आते हैं.)
28 मई 2013
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