मंगलवार, 21 मई 2013


मगहर का ‘दलित बचपन’ विशेषांक
कँवल भारती
प्रतिरोध, परिवर्तन और प्रगति की अनियतकालीन पत्रिका ‘मगहर’ का 432 पृष्ठों का ‘दलित बचपन’ विशेषांक दो कारणों से अत्यन्त महत्वपूर्ण है. एक, इसको पढ़ना सर्वथा नये अनुभवों से गुजरना है और दो, यह दलित साहित्य में संभवतः पहला काम है, जो मुकेश मानस की सम्पादकीय क्षमता से दस्तावेजी बन गया है. इस समय हिन्दी में लगभग पचास से भी ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है, पर अगर यह गणना की जाय कि ऐसी कितनी पत्रिकाएँ हैं, जिनका चिंतन और विमर्श में उल्लेखनीय काम है, और जिसका कोई अंक संजोकर रखने लायक निकला हो, तो शायद हमारी गिनती एक हाथ की अँगुलियों तक भी न पहुँच पाये. ‘मगहर’ नयी पत्रिका है और कुल जमा छह अंक ही अभी उसके निकले हैं. पर पहले अंक से ही वह दलित विमर्श को एक नयी धार देने के लिए जानी जायगी. ‘दलित बचपन’ विशेषांक उसका पांचवां अंक है, जो पहली बार एक अनछुए पहलू पर पूरी टीम वर्क के साथ निकाला गया है. यही कारण है कि यह विशेषांक हमे इतने व्यापक स्तर पर दलित लेखकों के बचपन से रू-ब-रू कराता है.
      बहुत से लेखकों ने अपने बचपन की मधुरता के रोचक किस्से बयान किये हैं. मधुर बचपन पर सुभद्राकुमारी चौहान की कविता प्रसिद्ध ही है. पर दलित लेखकों के बचपन इतने मधुर नहीं हैं कि उन्हें वे बार-बार याद करें. उनके बचपन तो भूख, गरीबी और अभावों की दुनिया के काले चित्र हैं. वे कहीं से भी सुन्दर नहीं लगते. पर बड़ा सवाल यह है कि उनके बचपन की दुनिया इतनी काली क्यों हैं? उनके लिए उस भयानक काली दुनिया का निर्माण किसने किया? अगर दुनिया का निर्माता ईश्वर है, तो वह बहुत अन्यायी और क्रूर ईश्वर है, जिसने दलितों के लिए काली और भयानक दुनिया बनाई.
      ‘मगहर’ का ‘दलित बचपन’ विशेषांक दलित जीवन की इसी काली दुनिया से हमारा साक्षातकार कराता है. इस अंक की एक खासियत यह भी है कि इसमें हिन्दी के साथ-साथ दूसरी भाषाओँ के दलित लेखकों के बचपन के चित्र भी दिए गए हैं. रविंदर कौर का लेख ‘गुरुवां दे दर्शन बारो ही कर लेंणा’ उनके बचपन के संघर्ष को तो हमारे सामने रखता ही है, यह भी बताता है कि गुरुओं की धरती पंजाब में भी दलितो की दुनिया आज़ादी की दुनिया नहीं है.
मेरे लिए तो यह चित्र नए नहीं हैं, पर उन तमाम लोगों को यह विशेषांक जरूर पढ़ना चाहिए, जो, यह सवाल उठाते हैं कि गैर दलित लेखक दलित साहित्य क्यों नहीं लिख सकते?
21 मई 2013  
      

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