रविवार, 26 मई 2013

क्या बुद्ध को ही राम के चरित्र में रूपांतरित किया गया?
(कँवल भारती)
मोतीराम शास्त्री बनारस के एक बहुत बड़े बौद्ध विद्वान हुए हैं, जो अपनी अनूठी स्थापनाओं की वजह से दलित साहित्य में हमेशा जीवित रहेंगे. उनकी कई स्थापनाओं में से एक स्थापना यह है कि ‘अवतार’ का अर्थ है, ‘उतारा हुआ’ यानी नक़ल. इस आधार पर उनका कहना था कि राम का अवतार बुद्ध का ‘उतार’ है और कृष्ण का अवतार हजरत मूसा का ‘उतार’ है. लखनऊ में 104 रायल होटल में (इस जगह अब बापू भवन खड़ा है) वे प्रेमचंद आर्य के साथ रहते थे, जो बाबू जगजीवन राम के ‘दलित वर्ग संघ’ का प्रांतीय दफ्तर था. उन दिनों मैं लखनऊ में ही रहता था, इसलिए अक्सर उनसे मिलना होता रहता था. मैं जब भी वहाँ जाता, उन्हें बौद्धदर्शन पर ही बात करते पाता था. वे मेरे संघर्ष के दिन थे, रहने का कोई ठौर-ठिकाना था नहीं, महीनों बुद्ध विहार रिसालदार पार्क में रहा और बहुत बार 104 रायल होटल में भी. इस तरह मुझे प्रेमचंद आर्य और मोतीराम शास्त्री दोनों ही का अच्छा संपर्क मिला. प्रेमचंद आर्य की रूचि राजनीति में थी और मोतीराम शास्त्री की साहित्य में. मोतीराम शास्त्री इस कदर अध्ययन-रत रहते थे कि 15-15 दिन तक नीचे नहीं उतरते थे और हमेशा दो-चार लोगों के साथ गोष्ठी जमाए रहते थे. एक बार जब मैं गया तो देखा कि वे अपनी नयी खोज ‘उतार’ पर बात कर रहे थे. वे कह रहे थे कि ‘अवतार’ असल में ‘उतार’ है. ब्राह्मणों ने राम के चरित्र को बुद्ध से उतारा है और कृष्ण के चरित्र को मूसा के जीवन से उतारा है. खोज सचमुच दिलचस्प थी. वे जिस तरह एक-एक घटना को लेकर रामचरित्र का उतार हमारे सामने रख रहे थे, वह हैरान कर देने वाला था. यह 1979-80 की बात होगी. तब तक सब कुछ मौखिक ही था. पर बाद में उन्होंने उसे लिख भी लिया था और छपवा भी दिया था, जो शायद उनकी ‘बौद्ध सहारा शिविर’ नाम से है. इसके अलावा कुछ और खोजें भी उनकी थीं. इनमे एक खोज कबीर और रैदास को लेकर थी, जो आज भी मेरे गले नहीं उतरती. उनका कहना था कि कबीर और रैदास दोनों सन्त बौद्ध स्थविरों--सोपाक और सुप्पिय—के उतार हैं. इस पर मेरी उनसे हमेशा असहमति बनी रही.
      किन्तु जहां तक राम के उतार का सवाल है, वहाँ मोतीराम शास्त्री का मत विचारणीय जरूर है, उसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता. कुछ समानताएं उल्लेखनीय हैं, यथा- बुद्ध (सिद्धार्थ) क्षत्रिय थे, राम भी; सिद्धार्थ का विवाह स्वयंबर में हुआ, राम का भी; सिद्धार्थ को पानी के विवाद पर गृह-त्याग करना पड़ा, राम को केकई के विवाद पर; सिद्धार्थ ने स्वयं यशोधरा को छोड़ा, राम की पत्नी सीता का अपहरण हुआ; सिद्धार्थ सारथी छन्न को लेकर घर से निकले और राम ने सारथी सुमंत के साथ वन-गमन किया; सिद्धार्थ रैवत नाम के ब्राह्मण ऋषि के आश्रम पहुंचे और राम भारद्वाज ब्राह्मण के आश्रम में; सिद्धार्थ को घर वापिस लौटने के लिए बिम्बिसार ने समझाया और राम को भरत ने; बुद्ध ने ‘मार’ को पराजित किया और राम ने रावण को. कुछ समानताएं और भी हैं, जो मुझे अब याद नहीं आ रही हैं. मोतीराम शास्त्री यह भी कहते थे कि राम ने रावण को नहीं, बुद्ध को मारा था. रावण के प्राण उसकी नाभि में थे, जो बुद्ध के मध्यम मार्ग का प्रतीक है. वे कहते थे कि मध्यम मार्ग बौद्धधर्म का प्राणतत्व है. ब्राह्मणों ने बौद्धधर्म को खत्म करने के लिए ही रामकथा गढ़ी थी.
      मोतीराम शास्त्री की इस थ्योरी पर बहस की बहुत गुंजाईश है. और अपने-अपने ढंग से लोग इस पर बहस करेंगे ही. यह बहस कहाँ तक जाती है, देखना यही है.
26 मई 2013



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