अब यह नहीं चलेगा
(कँवल भारती)
तुमने किस साजिश
से हमें पढ़ने नहीं दिया, अब समझ में आ रहा
है.
तुमने क्या-क्या
नहीं किया हमें बर्बाद करने के लिए
सिर्फ इसलिए कि
हम तुम्हारे सांस्कृतिक गुलाम बने रहें--
तुमने निर्गुण
राम को, जो हमें कबीर ने दिया था,
राक्षसों और
असुरों के बधिक राजा राम का रूप दे दिया
एक आदिवासी को
बनाकर गुलाम बैठा दिया उनके चरणों में
और हमने कुछ नहीं
कहा, खामोश ही रहे,
तुम्ही ने लिखा,
तुम्ही ने थोपा,
हमने अनुकरण किया,
हम अशिक्षित कैसे समझ सकते थे तुम्हारा जाल?
जिन्दा भी कहाँ
रहने दिया था तुमने उसे
जिसने भी चाहा था
तुम्हारी बराबरी करना.
शस्त्र-विद्या
में पारंगत एकलव्य का अंगूठा इसीलिए न काटा था तुमने
कि वो अर्जुन से
आगे जा रहा था,
और तुमने अपना
काला इतिहास लिख दिया
कि एकलव्य ने खुद
अपना अंगूठा दान किया था गुरु को,
जो वह था ही
नहीं.
तुम्ही ने लिखा,
तुम्ही ने थोपा
हमने अनुकरण किया,
हम अशिक्षित कैसे समझ सकते थे तुम्हारा जाल?
क्यों मरवाया था तुमने
राम से शम्बूक को?
इसीलिए न कि वो तुम्हारी
वर्णव्यवस्था को उलट रहा था?
तुमने कितना बड़ा
झूठ गढ़ा था कि वो राम के हाथों मृत्यु का याचक बन
सदेह स्वर्ग जाने
की कामना से उल्टा तप कर रहा था.
तुम्ही ने लिखा,
तुम्ही ने थोपा
हमने माना, हम अशिक्षित कैसे
समझ सकते थे तुम्हारा जाल?
कितनी क्रूर हिंसा की थी
तुमने हिरण्यकश्यप के साथ
तुमने क्यों फड़वाया था भूखे
शेर से उसका जिस्म?
इसीलिए न कि वो
विष्णु-विरोधी, देव-विरोधी था,
मानता था स्वधर्म को.
तुमने लिखा कि वह नरसिंह
अवतार था जिसने मारा उसे.
कितना बड़ा खतरा रहा होगा वो
तुम्हारे ब्राह्मण-धर्म के लिए
कि अवतार लेना पड़ा था उसे
मारने के लिए भगवान को.
तुम्ही ने लिखा,
तुम्ही ने थोपा
हमने माना, हम अशिक्षित कैसे
समझ सकते थे तुम्हारा जाल?
कितना छल किया था तुमने
ब्राह्मण-विरोधी देव-विरोधी महिषासुर के साथ
जब दमन नहीं कर सके उसका तो
एक रूपसी को भेजा तुमने उसे मारने के लिए
जिसने उसे आठ दिन तक अपने
रूप-जाल में फांसा,
और नौवें दिन उसकी हत्या कर
दी.
हमारे सांस्कृतिक पुरौधा की
हत्यारी दुर्गा को तुमने महाशक्ति बना दिया
अब मनाते हो हर वर्ष उसकी
स्मृति में पूजा का देश व्यापी उत्सव
हमारे जख्मों पर नमक छिड़कने
के लिए.
तुम्ही ने लिखा,
तुम्ही ने थोपा
हमने माना, हम अशिक्षित कैसे
समझ सकते थे तुम्हारा जाल?
अब तक जो भी तुमने चाहा,
वही हुआ,
पर भारत में अंग्रेजों के
आगमन और लोकतंत्र को आने से तुम नहीं रोक सके,
हम शिक्षित हो गये,
जोतिबा फुले और डा. आंबेडकर
जैसे विद्वान का नेतृत्व हमें मिल गया.
हम अब जाग गये हैं, समझ गये
हैं तुम्हारा जाल.
कि कैसे तुमने मारा हमारे
नायकों को
कैसे हमें बनाया गुलाम?
अब तुम कहते हो कि हम
मिथकों की राजनीति कर रहे हैं,
जातिवाद और साम्प्रदायिकता
फैला रहे हैं,
और इस आरोप में तुम
गिरफ्तार करा रहे हो हमारे लेखकों को,
जब्त करा रहे हो हमारी
पत्रिकाओं को.
हम समझ गये हैं कि तुम
लोकतंत्र में भी मौजूद हो
हमें फांसी देने के लिए.
नासमझी में हमारे लोगों ने
बड़ी गलती की तुम्हें देश का नेतृत्व सौंप कर,
तुम इस योग्य बिल्कुल नहीं
हो.
पूरा देश जानता है कि
तुमने मिथक की राजनीति करके
पूरे देश में आग लगा दी है
कोई प्रमाण नहीं मिला
अयोध्या में राम के होने का
फिर भी तुमने ध्वस्त कर दी
बाबरी मस्जिद,
सड़कों पर लोगों का खून बहा
दिया एक मिथक के लिए,
तुम मिथक के लिए राजनीति करो
तो लोकतंत्र
हम करें तो जातिवाद
अब यह नहीं चलेगा, बिल्कुल
नहीं चलेगा.
--कँवल भारती
(9-10-2014)
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