गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014



जकड़बन्दी
कॅंवल भारती
हमारे अपमान और विनाश की संस्कृति रचने के बाद
जब उसे समझने और बोलने की
हमारी बारी आई,
तो तुमने धाराएँ बना दीं 153ए और 295
कि हम प्रतिरोध भी न कर सकें।
तुम्हें मालूम था कि
जहालत का जो जाल तुमने हमारे इर्द-गिर्द बुना था,
हम उसे एक दिन तोड़ेंगे,
तो तुमने हमें जेल में डालने का पूरा इंतजाम कर लिया।
कर लो,  अभी तुम्हारे ही दिन हैं,
अपनी सफलता पर रीझो
कि हमारे नायक भी तुम्हारे चरणों में बैठे हुए हैं।
उन्हें बड़ा सी कोठी चाहिए,  बड़ी सी कार
बड़ा सा संरक्षण’...और भी बहुत कुछ बड़ा-बड़ा सा।

12.10.2014

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