जकड़बन्दी
कॅंवल भारती
हमारे अपमान और
विनाश की संस्कृति रचने के बाद
जब उसे समझने और
बोलने की
हमारी बारी आई,
तो तुमने धाराएँ बना
दीं 153ए और 295ए
कि हम प्रतिरोध
भी न कर सकें।
तुम्हें मालूम था
कि
जहालत का जो जाल
तुमने हमारे इर्द-गिर्द बुना था,
हम उसे एक दिन तोड़ेंगे,
तो तुमने हमें
जेल में डालने का पूरा इंतजाम कर लिया।
कर लो, अभी तुम्हारे ही दिन हैं,
अपनी सफलता पर
रीझो
कि हमारे नायक भी
तुम्हारे चरणों में बैठे हुए हैं।
उन्हें बड़ा सी
कोठी चाहिए, बड़ी सी कार
बड़ा सा ‘संरक्षण’...और भी बहुत कुछ बड़ा-बड़ा सा।
12.10.2014
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