बुधवार, 16 जुलाई 2014

मेरे नाम डा. तेज सिंह के कुछ पत्र
(कँवल भारती)
      दलित चिन्तक, आलोचक और संपादक डा. तेज सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे. मैं उनके इस आकस्मिक निधन को अपनी निजी क्षति भी महसूस कर रहा हूँ. उनसे मेरी अंतिम भेंट देहरादून के एक कार्यक्रम में हुई थी. जहाँ से कार्यक्रम के बाद हम साथ-साथ मसूरी गये थे. अनीता भारती और वेद भी हमारे साथ थे. रास्ते भर मेरे और उनके बीच उनकी पत्रिका ‘अपेक्षा’ और उनके अम्बेडकरवादी आन्दोलन को लेकर तीखी बहस होती रही. मैंने यहाँ तक कहा कि आपकी ‘अपेक्षा’ पत्रिका के उद्देश्य को पूरा नहीं कर रही है. आप हर अंक किसी विषय पर केन्द्रित करते हैं, जिससे सामयिक मुद्दों के लिए उसमें स्पेस ही नहीं रहता है. यदि कोई बड़ी घटना घट जाये, तो उसकी रिपोर्टिंग आप कैसे करेंगे? मैंने उन पर यह आरोप भी लगाया कि आप विषय-केन्द्रित अंक इसलिए निकालते हैं, क्योंकि बाद में आप उसकी किताब बना देते हैं. उनके साथ वह बहस हमारी इतनी तीखी हो गयी थी कि वे झुंझला गये थे. पर जब हमारी गाड़ी एक पहाड़ी पर जाकर रुकी, तो वहां उतरे, तो  उनकी सारी झुंझलाहट खत्म. हम सब ने प्रकृति का आनंद लिया, चाय पी, और खूब हंसी-मजाक किया. ऐसे थे तेज सिंह. आज उस घटना को याद करके मैं अंदर से अपने को कितना दुखद महसूस कर रहा हूँ, यह मैं ही जानता हूँ. मेरी उनसे पहली मुलाकात रजनी तिलक के घर पर हुई थी, जिसकी तारीख-सन याद नही है. 19 मार्च 2001 को उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में समकालीन दलित कविता पर एक गोष्ठी करायी थी, जिसमें उनसे संभवतः तीसरी बार मिलना हुआ था. मेरी और उनकी मेल-मुलाकातें ज्यादा नहीं हुई थीं, पर मेरे और उनके बीच सन 2004 तक कुछ पत्राचार हुआ था. उनमें कुछ पत्र मेरे पास सुरक्षित हैं, जो संख्या में 12 हैं. वे पोस्टकार्ड लिखते थे. मैं ये सभी 12 पोस्टकार्ड  दलित साहित्य के विद्यार्थियों को उपलब्ध करा रहा हूँ. अवलोकन करें—

पत्र-1
दिल्ली- 4-3-002
प्रिय भाई भारती जी,
जय भीम ,
आज ही आपका पोस्टकार्ड मिला. अधिवेशन की रूपरेखा बनाने के तुरंत बाद मैं आपको पत्र देकर सूचित कर दूंगा कि आपने किस विषय पर आलेख प्रस्तुत करना है. आपने अपने साहित्यिक निबंधों के प्रकाशन के लिए लिखा था. मुझसे ज्यादा आपकी प्रतिष्ठा है और आपके लिए प्रकाशकों की कोई कमी नहीं होनी चाहिए. फिर भी एक प्रकाशक—साहित्य संस्थान, लोनी रोड स्थित से बात कर सकता हूँ, जिसने डा. बेचैन की तीन पुस्तकें एक साथ प्रकाशित की थीं. शायद आप उससे परिचित होंगे. अप एक बार वाणी प्रकाशन या राधाकृष्ण प्रकाशन दरियागंज से भी पत्र द्वारा सम्पर्क करके बातचीत चला सकते हैं, क्योंकि वे दोनों प्रकाशक दलित साहित्य को भुना रहे हैं. आप पाण्डुलिपि (तैयार) करके किसी दिन दिल्ली आ जाएँ तो प्रकाशकों से सम्पर्क कर सकते हैं. साहित्य संस्थान से भी बात बन सकती है.
उम्मीद है परिवार सहित स्वस्थ और सानंद होंगे.
आपका,
ह. (तेज सिंह)

पत्र-2
दिल्ली--26-2-002
प्रिय भाई भारती जी,
आपका स्वीकृति पत्र मिला. प्रसन्नता हुई कि आपका सहयोग हमें मिल रहा है. इससे पहले आपकी महत्वपूर्ण पुस्तक संत रैदास : एक विश्लेषण मिल गयी थी. कृपया आप ही मुझे सुझाव दीजिये कि इस पुस्तक पर किस पत्रिका व पत्र में समीक्षा लिखकर भेजूं. पुस्तक पढ़ ली है और अच्छी भी लगी. मैं स्पष्ट कर दूँ कि दलित लेखक संघ का पहला अधिवेशन साहित्यिक एजेंडे के तहत ही हो रहा है. उद्घाटन सत्र में राजनीतिक-सामाजिक एजेंडा रहेगा. अन्य चारों सत्रों में कविता, कहानी, आत्मकथाएं और पत्रकारिता पर आलेख पढ़े जायेंगे. चौथा सत्र दलित साहित्य आन्दोलन पर केन्द्रित किया गया है. शीघ्र ही कार्यक्रम की रूपरेखा बनाकर भेजी जायेगी. आपके सुझाव से हमें मार्गदर्शन मिला. आपसे मेरा अनुरोध है कि साहित्यिक विधा पर कहानी-कविता या आत्मकथा पर आलेख तैयार करके भेज दीजिये. आपका सहयोग जरूरी है. अगर दिल्ली आना सम्भव हो तो सूचित करें, ताकि कार्यक्रम पर विशेष चर्चा की जा सके.
पत्र की प्रतीक्षा में,
आपका
ह. (तेज सिंह)

पत्र-3
दिल्ली--30-5-002
प्रिय भाई भारती जी,
लम्बे अरसे बाद पत्र लिख रहा हूँ. आपके लेखन पर निरंतर नजर है. व्यक्तिगत स्तर पर अनुरोध करने के बाद भी आप दलित लेखक संघ के पहले अधिवेशन में नहीं आये. यह शिकायत तो रहेगी ही. रजनी से मालूम हुआ, आप नहीं आ रहे हैं. फिर मालूम हुआ कि आ रहे हैं. इस आने और न आने के बीच क्या घटा मुझे नहीं मालूम. मुझे नहीं मालूम कि मैं आपके प्रति इतना क्यों सम्मान-भाव रखता हूँ? आपसे सिर्फ मैं एक बार रजनी (के) घर तो दूसरी बार हिंगणघाट पर कुछ समय के लिए मिला था. उसके बाद आपसे कोई मुलाकात नहीं हुई, फिर भी वह सम्मान-भाव बना रहा है, जिसकी अपेक्षा दो साहित्यकारों के बीच होती है. इस बीच आपका कोई पत्र भी नहीं मिला.
‘राष्ट्रीय सहारा’ में आपकी पुस्तक ‘संत रैदास : एक विश्लेषण’ की समीक्षा भेजी थी, जो वापस आ गयी है कि आप और चैयरमैन (सुब्रतराय) के बीच कुछ मामला है. मुझे नहीं मालूम कि क्या कारन है? अब मैं वह समीक्षा ‘हंस’ में भेज रहा हूँ. शायद वह छप जायगी. ‘राष्ट्रीय सहारा’ में आपका और आपकी रचनाओं की समीक्षा पर प्रतिबंध लगा रखा है, ऐसा मुझे लगता है. खैर ! लेखक के लिए पत्रों-पत्रिकाओं की कमी नहीं होती है. वैसे भी आप ‘राष्ट्रीय सहारा’ के मुहताज नहीं हैं. ‘आज का समय’ पुस्तक कविता-संकलन आ गया है. शीघ्र ही भेजूंगा. ‘हंस’ के जुलाई अंक में एक लेख आ रहा है. पढ़ कर लिखिए.
आपका साथी,
ह. (तेज सिंह)

पत्र-4
दिल्ली--17-7-002
प्रिय भाई कँवल भारती जी,
‘आज का समय’ कविता-संकलन मिल गया होगा. ‘अपेक्षा’ नाम से एक त्रैमासिक पत्रिका (आलोचना) सितम्बर 002 में प्रकाशित करने जा रहा हूँ. मूलतः आलोचना की ही पत्रिका रहेगी. साहित्यिक-सांस्कृतिक लेखों के अलावा पुस्तक समीक्षाएं (लम्बी) तथा चार पेज कविता के रहेंगे. दलित साहित्य पर केन्द्रित एक आलेख आपसे जरूर चाहिए. कुछ नयी कविताएँ लिखी हों तो वह भी भेज दें. जुलाई के अंत तक सामग्री आ जाये, तो अच्छा रहेगा. सहयोग की अपेक्षा के साथ पात्र की प्रतीक्षा में उम्मीद है कि आप स्वस्थ और सानन्द होंगे.
आपका साथी,
ह. (तेज सिंह)

पत्र-5
दिल्ली- 6-12-02
प्रिय भाई भारती जी,
कल दोपहर बाद आपका लेख मिला. धन्यवाद. मैं आपके ही लेख की प्रतीक्षा कर रहा था. लेख पढ़ लिया है. उसमें कांटने-छांटने की जरूरत नहीं है. वह पहले ही आप कर चुके हैं. जहाँ तक पत्रिका के संपादक के अधिकार का सवाल है, वह पत्रिका को विवाद से बचाने के लिए ही ऐसे विवादास्पद अंशों को काट देता है. तो ऐसे में लेखक (को) अनावश्यक रूप से शिकायत नहीं करनी चाहिए. लेख में ऐसा कुछ नहीं है कि मुझे उसमें कुछ काटना पड़े. इसलिए लेख जैसा है, उसी रूप में आ रहा है. अगले अंक के लिए रैदास पर लेख चाहिए. अभी ही सूचित कर रहा हूँ. रैदास वाली पुस्तक की समीक्षा ‘हंस’ में छपने के लिए दे दी है. देखें कब आती है?
 आपका साथी,
ह. (तेज सिंह)

पत्र-6
दिल्ली- 21-2-03
प्रिय भाई भारती जी,
‘अपेक्षा’ का कबीर अंक भेज दिया है. आगामी अंक के लिए रैदास पर लम्बा लेख शीघ्र ही भेजें. अंक पर अपनी प्रतिक्रिया भी. आई.एस.आई. में मिलना न के बराबर रहा. आपने मुझसे वादा किया था कि दिल्ली आकर फोन करूँगा. और विचार-विमर्श भी. पर आप दूसरे कारणों से भूल गये. मुझे कोई शिकायत नहीं है. वर्तमान परिस्थितियों में शिकायत बेमानी हो जायगी. संकेत आप समझ रहे होंगे.
रैदास पर लेख शीघ्र ही भेजिए. पत्रिका मार्च के अंत में आ जायगी.
आपका,
ह. (तेज सिंह)
पत्र-7
दिल्ली- 6-5-03
प्रिय भाई,
रैदास-अंक भेजा जा रहा है. आगामी अंक दलित आत्मकथा विशेषांक के लिए लम्बा लेख चाहिए, जो दलित आत्मकथाओं पर केन्द्रित हो. 25 मई तक अवश्य भेज दीजिए.यह अंक एक उपलब्धि के तौर पर निकालने के लिए कटिबद्ध हूँ, जिसमें आपका सहयोग जरूरी है. रैदास अंक पर प्रतिक्रिया भी भेजें. दलित धर्म की अवधारणा पर ईशकुमार का लम्बा लेख क्रिया-प्रतिक्रिया स्तम्भ में है. उम्मीद है कि परिवार सहित स्वस्थ एवं सानन्द होंगे. पत्नी भी स्वास्थ्य लाभ कर रही होंगी. मेरी तरफ से मेरी शुभकामनाएं दे दें कि वे जल्दी ठीक हो जायें.
आपका साथी,
ह. (तेज सिंह)

पत्र-8
दिल्ली- 7-6-03
प्रिय भाई भारती जी,
पहले भी एक पत्र लिख चुका हूँ. उससे पहले दिल्ली में ही एक मुलाकात में याद दिलाया था कि दलित आत्मकथाओं पर आपका लम्बा लेख जाना है. तैयारी चल रही है. काफी लेख-समीक्षाएं आ गयी हैं. अब हम आपके लेख की प्रतीक्षा कर रहे हैं. व्यस्तताओं के बीच से समय निकाल कर लेख लिख लिया होगा, ऐसी उम्मीद है.
उम्मीद है कि पत्नी का स्वास्थ्य अब ठीक होगा. आपने बताया था कि वे अस्वस्थ चल रही हैं.
पत्र की प्रतीक्षा में नहीं, लेख की प्रतीक्षा में हूँ. तीसरा अंक कैसा लगा? पत्र लिखें.
आपका साथी,
ह. (तेज सिंह)

पत्र-9
दिल्ली- 6-3-04
प्रिय भाई कँवल भारती जी,
आपका पत्र मिला. अंक-5 में गलती से मनुष्य के स्थान पर व्यक्ति चला गया है. आपका कहना ठीक है. लेकिन ऐसा जानबूझ कर नहीं किया गया है. दरअसल, डा. अम्बेडकर के धर्म सम्बन्धी विचार बाली की पुस्तक से अवधेश (कम्प्यूटर) ने उतार लिए थे. गलती यह हुई कि मुझे वे देखने चाहिए थे. अगले अंक-6 में पुनः सुधार कर वे विचार दिए जा रहे हैं, ताकि पाठकों को सही विचार मिल जाय. इसके लिए आपके आभारी हैं.
अंक-6 के लिए कोई लेख भेज दीजिए. यह अंक 14 अप्रेल से पहले आयगा. आपका रचनात्मक सहयोग पत्रिका को गरिमा प्रदान करेगा. पत्र की प्रतीक्षा में. उम्मीद है कि आप स्वस्थ एवं प्रसन्न होंगे.
आपका साथी,
ह. (तेज सिंह)
  
पत्र-10
दिल्ली- 15-5-04
प्रिय भाई भारती जी,
आपकी पुस्तक ‘दलित चिंतन में इस्लाम’ मिली और उसी दिन पढ़ भी डाली. इसके दो लेख पहले पढ़ चुका था. अंत में मो. कैसर के पत्र देकर अच्छा किया, ताकि किसी को कोई भ्रम न रहे. पुस्तक पढ़कर पहली प्रतिक्रिया यही बनी कि आपको ऐसे काम के लिए धन्यवाद दूँ. इन दिनों आप निश्चित यह गंभीर काम कर रहे हैं, जिसकी दलित समाज को जरूरत थी और है. इस पुस्तक पर डा. धर्मवीर से समीक्षा करा दीजिये. पुस्तक उन्हें भेज दें, तो मैं उनसे ‘अपेक्षा’ में समीक्षा के लिए पत्र लिख दूंगा. जैसा आप उचित समझें. अंक-6 भेजा जा रहा है. आगामी अंक के लिए लेख वगैरा भेजें.
उम्मीद है, आप स्वस्थ एवं सानन्द होंगे.
आपका साथी,
ह. (तेज सिंह)


पत्र-11
दिल्ली- 2-6-04
प्रिय भाई,
‘अपेक्षा’ के अंक-6 पर आपकी प्रतिक्रिया मिली. उसके लिए धन्यवाद. शायद आपको मेरा पत्र नहीं मिला जो आपकी पुस्तक ‘इस्लाम और दलित’ (सही नाम ‘दलित चिंतन में इस्लाम’) पर लिखा गया था. ‘अपेक्षा’ में समीक्षा के लिए एक प्रति और भेजें. ईशकुमार समीक्षा करेंगे. अंक-8 के लिए ‘दलित साहित्य आन्दोलन’ पर केन्द्रित, आपसे लम्बा लेख माँगा गया है. उम्मीद है कि आप हमें निराश नहीं करेंगे. यथावत अपना सर्जनात्मक सहयोग देते रहेंगे. आपका लेख अपरिहार्य है.
रामपुर या मुरादाबाद में पत्रिका की बिक्री के लिए कोई स्थान बतायें. उम्मीद है कि आप स्वस्थ एवं सानन्द होंगे.
आपका साथी,
ह. (तेज सिंह)

पत्र-12
दिल्ली- 1-9-04
प्रिय भाई भारती जी,
तीसरा पत्र लिख कर दुबारा याद दिला रहा हूँ कि ‘अपेक्षा’ का अगला अंक अम्बेडकरवादी साहित्य आन्दोलन के रूप में (विशेषांक) आ रहा है. आपने वादा किया था कि आप लेख जरूर भेजेंगे. एक लम्बा सा लेख लिखकर (लिख किया होगा) 20 सितम्बर तक जरूर भेज दीजिए. आपके लेख की प्रतीक्षा में. उम्मीद है आप स्वस्थ एवं सानन्द होंगे.
आपका साथी,
ह. (तेज सिंह)






कोई टिप्पणी नहीं: