सोमवार, 14 जुलाई 2014

उपचुनावों के लिए गरमाया जा रहा है प्रदेश
(कँवल भारती)
उधर मानसून रूठा हुआ है और आग बरस रही है. आम जनता धूप और गर्मी से बिलबिला रही है. और इधर उत्तर प्रदेश में जनता के नुमाइन्दे अपने जहरीले और भड़काऊ बयानों से प्रदेश का माहौल गरमा रहे हैं. अभी आरएसएस के किन्हीं गगन शर्मा ने सोशल मीडिया पर मुसलमानों को भड़काने वाली यह पोस्ट डाली है--
“मुगलों ने कराया धर्मपरिवर्तन और नेता उसे आगे बढ़ा रहे हैं.
क्या किया तुर्को, मुगलो और बर्बर आकमणकरियो ने, गाँव के गाँव जलाये, माँ बहिनों की इज्जत लूटी, हिंदू लडको का गुप्ताग काटकर उनको हिजड़ा बनाकर अपने हरम का चौकीदार बनाया, ताकि वो अपनी ही बहिनो और माताओं की चीखें सुन सकें.  बर्बरतापूर्ण बलात्कार और उस समय उनकी दिल को चीर देने वाली करुण और कुछ समय बाद दम तोड़ती चीखों ने उन चौकीदार बने हिन्दुओं को अन्दर से डरा दिया. अपनी माँ, बहिनों की ऐसी हालत देख वो चौकीदार हिन्दू खौफ से दहल जाते थे.  छोटे बच्चे और क्या कर सकते थे, उस समय भी कुछ कायर हिंदू इन बर्बर लोगो के साथ थे, क्योंकि इस देश मे जयचंदों की एक लम्बी परम्परा रही है. इन तुर्को, पठानों, मुगलों के पास लूट, खसोट, आगजनी, बलात्कार के अलावा कोई काम था ही नहीं.  मूर्ख इतिहासकार कहते है कि इन बर्बर आतताइयों और बलात्कारियों ने विश्व प्रसिद्ध इमारते बनवाई, अधिकांश तो इसमें से सफेद झूठ है. अरे इन्होने तो हिन्दुओं की पहले से बनी इमारते तोड़ी है और अपनी चीजें बनायीं हैं अपने नाम से. पर मूल रूप से तो वो हिन्दुओं की ही बनायीं हुईं हैं. जिन इमारतों को टूटने से बचना था उनका काफिरो के हाथों ही इन जयचंदों ने इस्लामीकरण कराया.”
इन संघी गगन शर्मा महाशय की यह काफी लम्बी पोस्ट है, जो गूगल (G+) पर मौजूद है. इसमें उन्होंने मुस्लिमों के खिलाफ और भी बहुत सी अनर्गल जहरीली बातें लिखी हैं. पता नहीं अभी तक इन महाशय के खिलाफ सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने के आरोप में आई.टी. एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज क्यों नहीं हुआ? इस तरह की अनर्गल और भड़काऊ बातें इसी वक्त क्यों कही जा रही हैं, जब केंद्र में हिन्दू राष्ट्रवादियों की सरकार बन गयी है और यूपी में कुछ सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं? मतलब साफ है कि ऐसे तत्व मुस्लिमों के विरुद्ध हिन्दू मतों को अपने पक्ष में ध्रुवीकृत करने की मुहीम चला रहे हैं.
यूपी में समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकार है, जो मुस्लिम हित की सरकार मानी जाती है और वह है भी. इसका मतलब है कि भाजपा और संघ परिवार की हर साम्प्रदायिक गतिविधि का राजनीतिक लाभ सपा को ही मिलना है, क्योंकि कांग्रेस यूपी में कमजोर है और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) पर मुसलमानों को भरोसा नहीं रह गया है. तब समझ में यही आता है कि हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता का मुद्दा यूपी में सपा और भाजपा दोनों ही पार्टियों के लिए फायदे का सौदा है. शायद यही वजह है कि कांठ मामले में दोनों पार्टियों की रणनीति सुविचारित है.
हिंदी पट्टी में कहाबत है कि जब तक बेवकूफ जिन्दा है, अक्लमंद भूखा नहीं मर सकता. धर्म की राजनीति में हम इस बात को इस रूप में कह सकते हैं कि जब तक लोगों में धर्मभीरुता है, तब तक साम्प्रदायिकता की राजनीति परवान चढ़ती रहेगी. यूपी की जनता बेवकूफ नहीं है, पर भोली-भाली धर्म-भीरु है, इसलिए साम्प्रदायिकतावादी नेता उन्हें बेवकूफ समझ कर उनकी धर्मभीरुता का लाभ उठाते हैं, उनकी बर्बादी और लाशों पर अपनी रोटियां सेकते हैं. यह खेल तब-तब खेला जाता है, जब-जब चुनाव होने वाले होते हैं. यूपी में चूँकि उपचुनाव होने वाले हैं, इसलिए यहाँ का सांप्रदायिक माहौल भी गरम होना शुरू हो गया है. इसी का नतीजा है लाउडस्पीकर के नाम पर मुरादाबाद का सांप्रदायिक बवाल. उस बवाल के लिए कांठ के अकबरपुर चैदरी गाँव में दलित बस्ती के वाल्मीकि मन्दिर को चुना गया. 26 जून को सुबह 9 बजे वाल्मीकि मंदिर पर लगे लाउडस्पीकर को मुरादाबाद पुलिस ने जबरदस्ती उतार लिया, विरोध करने पर वहां की औरतों पर लाठी-चार्ज किया. पुलिस ने लाउडस्पीकर इसलिए उतारा, क्योंकि सपा नेता की शिकायत थी कि गाँव के मुसलमान नाराज थे. यह एक गहरी साम्प्रदायिक साजिश थी, जिसका तानाबाना काफी पहले से बुना जा रहा था. पहली ही नजर में इस साजिश के पीछे सपा की भूमिका नजर आती है, जिसे अंजाम दिया मुरादाबाद की पुलिस ने. पुलिस ने बिना किसी छानबीन के, बिना किसी तफतीश के आनन-फानन में नेताजी का हुक्म बजा दिया. यह समझने की कोशिश ही नहीं की कि मन्दिर के लाउडस्पीकर से गाँव के मुसलमान नाराज थे या सपा के नेता? थोड़ी देर के लिए मान भी लें कि मन्दिर के लाउडस्पीकर से बजने वाली आरती से मुसलमानों की भावनाएं आहत हो रही थीं, तो उन्हें समझाना चाहिए था कि हमारे संविधान ने सभी समुदाय के लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता दी है. अपने-अपने धर्म के हिसाब से सभी को अपनी पूजा-उपासना करने का अधिकार है. यहाँ तक लाउडस्पीकर का सवाल है, तो उपासना-स्थलों पर अब उसका लगना आम चलन हो गया है. मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा सभी जगह तो लगे हैं लाउडस्पीकर. कहाँ-कहाँ से हटाओगे? कल को कोई आवाज उठायेगा कि रामलीलाएं बंद करो, मुहर्रम और धार्मिक जुलूसों पर पाबन्दी लगाओ, इससे हमारी भावनाएं आहत होती हैं, तो क्या संभव है इन सबको रोकना? ये कैसी भावनाएं हैं जो मन्दिर-मस्जिद के लाउडस्पीकरों से आहत हो जाती हैं?
हकीकत में न मन्दिर के लाउडस्पीकर से इस्लाम खतरे में पड़ता है और न मस्जिद के लाउडस्पीकर से हिन्दूधर्म खतरे में पड़ता है, क्योंकि हमारे धर्म इतने कमजोर नहीं हैं कि खतरे में पड़ जायें. भावनाएं या आस्थाएं भी आहत नहीं होती हैं, बस उनका राजनीतिक फायदा उठाने के लिए हमारे साम्प्रदायिकतावादी नेता भावनाएं आहत करने वाले शब्द जनता के मुंह में डालते हैं. इसलिए जनता को जागरूक होने की जरूरत है कि वह साम्प्रदायिक ताकतों का खिलौना बनने की कोशिश हरगिज न करे. इन साजिशों को समझने की जरूरत है. कांठ में भाजपा की महापंचायत को सपा सरकार ने रोका, ठीक किया. उसके विरोध में कांठ में बवाल हुआ, जिसमें मुरादाबाद के डीएम चंद्रकांत गंभीर रूप से घायल हुए. यह दोनों तरफ से साम्प्रदायिकता की राजनीति थी. सपा चूँकि सरकार में थी, इसलिए उसकी राजनीति महापंचायत को रोकने की ही हो सकती थी, जबकि विरोधी भाजपा ने बवाल कराकर राजनीति की. दोनों के काम आसान हो गये—हिन्दू भी ध्रुवीकृत हो गये और मुस्लिम भी. क्या यही धर्मनिरपेक्षता है कि हिन्दुओं को मुस्लिमों से लड़ायें और मुस्लिमों को हिन्दुओं से? क्या इसीलिए सपा और भाजपा के नेता रोज एक दूसरे के जहरीले बयान दे रहे हैं? अगर यही धर्मनिरपेक्षता है, तो रोजी-रोटी और विकास के सवाल तो ख़त्म, न हिन्दू सुरक्षित रहेंगे और न मुसलमान.
भाजपा की राजनीति के केंद्र में चूँकि आरएसएस का हिंदुत्व है, अत: आरएसएस के अनुषांगिक संगठन भी उससे जुड़े रहते हैं. इसलिए बवाल के बाद अब साधुपरिषद ने हिन्दू उन्माद को  भड़काने के लिए अकबरपुर चैदरी गाँव के वाल्मीकि मन्दिर में शिवरात्रि के दिन महाभिषेक करने का ऐलान किया है. इस महाभिषेक का धर्म से कुछ भी लेना-देना नहीं है. वह सिर्फ इसके जरिये भाजपा के पक्ष में माहौल गर्माना चाहती है. जाहिर है कि प्रशासन महाभिषेक को रोकेगा, जिसके खिलाफ भाजपाई सड़कों पर उतरेंगे. एक तरफ भाजपाई होंगे और दूसरी तरफ प्रशासन होगा और बीच में पिसेंगे मुसलमान, जो उसी तरह सपा के राजनीतिक मोहरे हैं, जैसे हिन्दू भाजपा के राजनीतिक मोहरे हैं. दोनों तरफ से घमासान होना तय है. इस घमासान को अगर कोई रोक सकता है, तो वह सिर्फ जनता ही है. मुझे लगता है कि चैदरी गाँव के दलितों को साधुपरिषद के महाभिषेक को रोकने का निर्णय लेना चाहिए. यह महाभिषेक उनके हित में नहीं है, बल्कि सामाजिक सद्भाव के हित में भी नहीं है. अगर साधुपरिषद उनकी हितैषी होती, तो क्या इससे पूर्व उनके मन्दिर में उसने कभी पूजा-अर्चना की?
14-07-2014


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