शनिवार, 3 मई 2014


 

यदि मुलायमसिंह प्रधानमन्त्री बनते हैं

(कॅंवल भारती)

                माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता प्रकाश करात ने दूर की कौड़ी फेंकी है कि तीसरे मोरचे की सरकार बनेगी तो उसके नेता मुलायमसिंह यादव होंगे, अर्थात् वह मुलायमसिंह यादव को भारत का प्रधानमन्त्री बनाना चाहते हैं। माकपा का देश में जनाधार नहीं है, यह तो समझ में आता है, पर यह समझ में नहीं आता कि उसके नेता अपने डूबते जहाज को बचाने के लिये ऐसे कप्तान का सहारा लेंगे, जो अपने ही जहाज को डुबोने का काम कर रहा है। वह मुलायमसिंह यादव, जिनकी पार्टी की सरकार ने उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था का सत्यानाश कर रखा है और जिसने देश की बहू-बेटियों के साथ बलात्कार करने वालों का पक्ष लेते हुए सरेआम यह कहा हो कि बच्चे हैं, गलती हो जाती है तो क्या उन्हें फाॅंसी दे दी जाये’, क्या पूरे देश की कानून-व्यवस्था का सत्यानाश नहीं कर देंगे?

                इन्हीं मुलायमसिंह यादव ने गत दिनों अद्भुत तर्क दिया था कि उ0 प्र0 में कानून-व्यवस्था इसलिये खराब है, क्योंकि यहाॅं जनसंख्या सबसे ज्यादा है। उनका कहना है कि दिल्ली आदि अन्य राज्यों में कम अपराध इसलिये होते हैं, क्योंकि उनकी जनसंख्या कम है, पर चूॅंकि उ0 प्र0 की जनसंख्या ज्यादा है, इसलिये यहाॅं अपराध भी ज्यादा होते हैं। कबीर के शब्दों में यही कहा जा सकता है कि फूटी आॅंख विवेक की।क्योंकि इसी तर्क से वे अपने आप को एक अयोग्य प्रशासक होने का भी प्रमाणपत्र दे रहे हैं। इसी तर्क से उनका उ0 प्र0 के विभाजन का विरोध भी अर्थहीन हो जाता है, क्योंकि इस तर्क से तो अपराध कम करने और चुस्त कानून-व्यवस्था के लिये उ0 प्र0 को कम-से-कम दो-तीन लघु प्रदेशों में विभाजित करना जरूरी हो जाता है। प्रकाश करात के जेहन में यह सवाल क्यों नहीं आया कि जब बीस करोड़ की जनसंख्या वाला एक प्रदेश मुलायमसिंह यादव और उनकी पार्टी से नहीं सॅंभाला जा रहा है, तो वे सवा सौ करोड़ की आबादी वाला देश कैसे सॅंभाल सकते हैं? जब बीस करोड़ की आबादी वाले प्रदेश में उनकी पार्टी के दो साल के शासनकाल में जंगल-राज कायम हो गया है, तो यह कौन विश्वास कर लेगा कि उनके प्रधानमन्त्री बनने के बाद पूरे देश में जंगल-राज कायम नहीं हो जायेगा?

                कानून-व्यवस्था को लेकर उ0 प्र0 की जनता में त्राहि-त्राहि मची हुई है। वह अपने को ठगा सा महसूस कर रही है। इसके कारण बहुत स्पष्ट हैं। अगर सपा-नेतृत्व मंथन करना चाहे, तो कर सकता है। उ0 प्र0 में सपा को पूर्ण बहुमत मिलने के पीछे बहुत-से कारणों में एक मुख्य कारण यह भी था कि सपा के प्रचार-अभियान की बागडोर युवा नेता अखिलेश के हाथों में थी। जनता ने यह सोच कर कि एक युवा मुख्यमन्त्री के नेतृत्व में उ0 प्र0 की तरक्की होगी और गुण्डई खत्म होगी, जनता ने सपा को पूर्ण बहुमत से जिताया था। यह जीत अखिलेश यादव की थी, न कि मुलायमसिंह यादव की। प्रदेश की युवा जनता की माॅंग थी कि अखिलेश यादव ही मुख्यमन्त्री हों। और मुलायमसिंह ने इसी युवा-मन की भावना का मान रखते हुए मुख्यमन्त्री-पद पर अखिलेश यादव की ताजपोशी करायी थी। जनता खुश थी कि प्रदेश की बागडोर एक उत्साही युवा नेता के हाथों में है, पर यह खुशी उस समय काफूर हो गयी, जब उनके पिता ने 50 प्रतिशत सत्ता अपने हाथों में रखी, और बाकी 50 प्रतिशत सत्ता के लिये उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव और रामपुर के चचा मियाॅं आजम खाॅं को उनके दोनों कन्धों पर बैठा दिया। युवा मुख्यमन्त्री ने भी बयान दे दिया कि वे अपने बुजुर्गों से राय-मशवरा लेकर ही सरकार चलायेंगे। यहीं से पूरे शासन का बण्टाधार शुरु हो गया। अब ये बुजुर्ग क्यों अखिलेश को अपनी मर्जी से काम करने देंगे? और इन बुजुर्गों ने उसे आज तक अपनी मर्जी से काम नहीं करने दिया। अखिलेश ने वही किया, जो इन्होंने उससे करवाया, उसने वही देखा, जो इन्होंने उसे दिखाया और उसने वही कहा, जो इन्होंने उससे कहलवाया। मतलब यह कि प्रदेश में चार मुख्यमन्त्री हैं, जिनमें अखिलेश यादव सिर्फ नाम के मुख्यमन्त्री बने हुए हैं। विद्रूप यह नहीं है कि प्रदेश की युवा जनता के साथ छल हुआ है, बल्कि विद्रूप यह भी है कि एक युवा नेता का करियर बनने से पहले ही खत्म हो गया। अब अखिलेश यादव से राजनीति में किसी चमत्कार की आशा नहीं की जा सकती। और इसके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ उनके पिता मुलायमसिंह यादव हैं।

                हमारे उत्तर प्रदेश में बिल्ली के भाग से छींका हाथ लगने की एक कहाबत प्रचलित है। हो सकता है कि यह कहाबत चरितार्थ हो जाय और मुलायमसिंह यादव के हाथ प्रधानमन्त्री की कुर्सी लग जाय! तब क्या होगा? उत्तर प्रदेश ही अपने को दुहरायेगा और एक नहीं, कई दर्जन अघोषित प्रधानमन्त्री मुलायमसिंह यादव के कन्धों पर बैठे होंगे। और स्थिति यह हो जायेगी कि साल-छह महीने में ही गुण्डों के राज से पूरे देश में त्राहि-त्राहि मच जायेगी। चलिये, यह तो अभी दूर की कौड़ी है, मुलायमसिंह यादव के लिये दिल्ली अभी बहुत दूर है। प्रधानमन्त्री बनने की कवायद से ज्यादा बेहतर उनके लिये यह होगा कि वे अपनी प्रदेश सरकार को दुरुस्त करने की कोशिश करें, जिस पर लोकसभा चुनावों के बाद संकट के बादल मॅंडरा सकते हैं।

मैं बताना चाहता हॅंू कि उ0 प्र0 में स्थिति बिगड़ने की शुरुआत कहाॅं से हुई? मेरी बात से कोई असहमत हो सकता है, पर सच्चाई यही है कि कानून-व्यवस्था शासन-प्रशासन और जिलों में अपने चहेते अधिकारियों की तैनाती करने से बिगड़ी है। मुलायमसिंह यादव, शिवपालसिंह यादव और आजम खाॅं की तिगड़ी ने जिलों में डीएम-एसपी से लेकर सीओ, एसओ, आरटीओ तक के सभी छोटे-बड़े पदों पर चुन-चुनकर यादव और मुस्लिम अधिकारियों की तैनाती कर दी। हालांकि इसमें कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि सभी पार्टियाॅं ऐसा ही करती रही हैं। काॅंगे्रस और भाजपा के राज में तो ज्यादातर ब्राह्मण ही सभी मुख्य पदों पर बिराजमान रहते हैं। पर सपा सरकार ने भी प्रदेश में अपने अधिकारियों की तैनाती का मापदण्ड उनकी काम करने की दक्षता और प्रशासनिक उपलब्धियाॅं के बजाय उनकी जाति और उनके धर्म को बनाया। पर इन मुस्लिम और यादव अधिकारियों में भी सपा सरकार के मन्त्रियों को वही अधिकारी पसन्द आये, जो उनके घरेलू नौकर की हैसियत से काम करने की योग्यता रखते थे। फलतः, ये अधिकारी मन्त्री-विधायकों के टूल्स की तरह इस्तेमाल होते रहे। जिन अधिकारियों से यह गुलामी न हो सकी, उन्हें तुरन्त हटा दिया गया। अतः, प्रदेश में स्थिति बिगड़नी ही थी, क्योंकि जिलों में तैनात अधिकारियों को जब सपा के मन्त्रियों, दर्जा मन्त्रियों और विधायकों का ही फरमावरदार बनकर रहना है, तो जनता को सुरक्षा कहाॅं मिल सकती है? मुरादाबाद में एक सपा नेता के कहने से ही एक थाने के मुस्लिम एसओ ने एक व्यापारी का अपहरण कर उसकी हत्या करके पुलिस जीप से ही उसकी लाश को दूसरे जिले की सीमा में फिंकवा दिया। भला हो उन गाॅंव वालों का, जिन्होंने पुलिस को लाश फेंकते हुए देख लिया, और उनके बयान से मामला खुल गया। अब वह एसओ गिरफ्तारी से बचने के लिये सपा नेताओं के यहाॅं शरण लिये हुए है। रामपुर में एक मुस्लिम सीओ सिटी और एक यादव एआरटीओ दोनों ही आजम खाॅं के इशारे पर उनके विरोधियों को सबक सिखाने का काम करते हैं। आजम खाॅं अपने कई विरोधियों के खिलाफ इन्हीं यादव एआरटीओ से झूठी एफआईआर लिखवाकर उन्हें जेल भिजवा चुके हैं और इन्हीं मुस्लिम सीओ सिटी से पिटवा चुके हैं। फेसबुक पर आजम खाॅं के विरुद्ध टिप्पणी पर जब मेरी गिरफ्तारी हुई, तो इन्हीं सीओ सिटी के आदेश पर थाने के दरोगा मुझे पैजामा-बनियान में ही बेइज्जत करके घसीटते हुए थाने ले गये थे। दो डीएम और एक एसपी ने आजम खाॅं के मौखिक गैरकानूनी आदेशों को जब नहीं माना, तो उन्हें बेइज्जत होकर रामपुर से जाना पड़ा। यह मुरादाबाद और रामपुर का ही सच नहीं है, वरन् पूरे प्रदेश का सच है। इन मुस्लिम और यादव अधिकारियों ने सपा के दबंग मन्त्रियों और विधायकों के दबाव में जनता का जीना मुश्किल कर रखा है।

                मेरे ऊपर यह आरोप लगाया जा सकता है कि मैं मुस्लिम और यादव के खिलाफ वैमनस्यता पैदा कर रहा हूॅं। मै इस आरोप का खण्डन करते हुए यह बताना चाहता हूॅं कि यह सच नहीं है। मै मुस्लिम और यादव का नाम जानबूझ कर इसलिये ले रहा हूॅं कि मैं उन्हें बताना चाहता हूॅं कि प्रदेश की बदतर हालत के लिये सपा सरकार से 100 गुना ज्यादा ये मुस्लिम और यादव अधिकारी जिम्मेदार हैं। समाजवादी पार्टी ने इन मुस्लिम और यादव अधिकारियों को एक मौका दिया था अपनी काबलियत और प्रशासनिक कुशलता साबित करने के लिये। पर ये नहीं कर सके। ये भूल गये कि इन्हें मुख्यधारा में लाने का सुनहरा अवसर सामाजिक न्याय की राजनीति ने दिया था, जिसकी लड़ाई कांशीराम के साथ-साथ मुलायमसिंह यादव ने भी लड़ी थी। एक लम्बे संघर्ष के बाद उन्हें यह अधिकार मिला था। अतः इन मुस्लिम और यादव अधिकारियों का कत्र्तव्य बनता था कि वे अपने आप को योग्यता और कुशलता में द्विज अधिकारियों से 100 गुना ज्यादा श्रेष्ठ साबित करके दिखाते। पर इन्होंने ईमानदारी से जनता के प्रति अपना कत्र्तव्य निभाने के बजाय और सरकार की कल्याणकारी और न्यायसंगत नीतियों पर चलने के बजाय मन्त्रियों और विधायकों की सेवा में लगे रहना ज्यादा बेहतर समझा। क्या फर्क पड़ता, अगर ये मन्त्रियों के गलत आदेशों को मानने से इनकार कर देते? अधिक-से-अधिक इनका स्थानान्तरण ही तो हो जाता। पर, एक ईमानदार और कुशल प्रशासक के रूप में जनता पर अपनी छाप छोड़ जाते। लेकिन इन्होंने सोचा कि यही मौका है, जितना कमाया जा सकता है, कमा लो और मन्त्रियों की गुलामी करके जितनी तरक्की मिल सकती है, ले लो। इन्होंने यह नहीं सोचा कि ऐसा करके वे अपने आप को अपराधी बना रहे हैं और प्रशासन के क्षेत्र में अपने आप को अयोग्य साबित कर रहे हैं। ऐसा करके इन्होंने अपना भविष्य तो खराब किया ही है, समाजवादी पार्टी का भी बेड़ा गर्क कर दिया। अगर मुलायमसिंह यादव और अखिलेश यादव सुन रहे हैं, तो अभी कुछ नहीं बिगड़ा है, वे अपने मुस्लिम और यादव अधिकारियों को पाठ पढ़ायें कि वे मन्त्रियों, दर्जा मन्त्रियों और विधायकों की गुलामी से बाहर निकलें और जनता से दोस्ती करें। शायद आगामी विधान सभा चुनावों में उनकी कुछ लाज रह जाय। पर, अभी एक और कटु सत्य मुलायमसिंह यादव यह भी सुन लें कि उनके पसन्दीदा मन्त्री आजम खाॅं को यह चिन्ता बिल्कुल नहीं है कि लोकसभा चुनावों में सपा जीतती है या हारती है, वरन् उनकी चिन्ता यह है कि प्रदेश में सपा के बाकी बचे तीन सालों में वह अपनी यूनिवर्सिटी के लिये विकास के नाम पर कितना धन सरकार से ऐंठ सकते हैं। उनकी सारी कवायद अपनी यूनिवर्सिटी के लिये है, समाजवादी पार्टी को मजबूत करने के लिये नहीं। यदि आज  चुनाव आयोग ने उनके चुनाव-प्रचार पर पाबन्दी लगायी हुई है, तो यह भी आजम खाॅं की ही सोची-समझी चाल है, ताकि वह सपा की हार का ठीकरा चुनाव आयोग पर फोड़ सकें और खुद साफ बच जायें। आजम खाॅं जैसे सपा नेताओं ने अपने क्षेत्र की जनता पर कितना जुल्म ढाया है, उसका रत्ती-भर एहसास भी मुलायमसिंह यादव को नहीं है। क्या ऐसा नेता भारत का प्रधानमन्त्री बनने की योग्यता रखता है?

( 2 मई 2014 )

                 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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