मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013


वाम मित्रों से कुछ सवाल 
(कँवल भारती)

मेरे वामपंथी मित्र मेरे कांग्रेस में जाने पर बहुत नाराज हैं. अब शायद मैं उनके लिए अछूत हो गया हूँ. पर मैं यह जानना चाहता हूँ कि उन्होंने कोई राजनैतिक विकल्प खड़ा क्यों नहीं किया? बिहार, प. बंगाल और केरल के अलावा उसका अस्तित्व कहाँ है? सीपीएम क्यों कांग्रेस को समर्थन देती रही है? वाम दलों ने दलित-पिछड़ों और मजदूरों के हक में कोई तीसरा मोर्चा क्यों नहीं बनाया? जब जनता शोषण और दमन के खिलाफ राजनैतिक बदलाव चाहती है, तो वाम राजनीति उसके लिए पार्टी का विकल्प क्यों नहीं खड़ा करती? क्यों शोषित और मजदूर जनता उत्तर प्रदेश में पूंजीवादी दलों को ही वोट देते हैं? वाम संगठनों के पास लाखों की संख्या में प्रशिक्षण प्राप्त कार्यकर्ता हैं, फिर क्यों कोई वाम पार्टी खड़ी नहीं हो पा रही है? गाँधी ने लोगों से पढाई-लिखाई छोड़ कर आज़ादी के आन्दोलन में भाग लेने को कहा था. वाम नेतृत्व ऐसा आवाहन जनता से क्यों नहीं करते?
मैं अपने बारे में बता दूं कि तीन मीटिंगों से मेरा मोह भंग हुआ था. पहली मीटिंग सीपीएम की थी जो दिल्ली में हुई थी. उसमे मैंने देखा कि दलित उत्पीडन के मुद्दे पर भी सीपीएम के नेता सम्भ्रान्त किस्म की राजनीति कर रहे हैं, वातानुकूलित कमरे में अंग्रेजी में बहस. दूसरी मीटिंग मैंने जनसुनवाई के रूप में भदोही में अटेंड की थी, दबंगों के अत्याचारों से पीड़ित दलितों ने अपनी आपबीती सुनाई थी, जो इतनी दर्दनाक थी कि मेरे रोंगटे खड़े हो गये थे. पर विकल्प क्या था? मेरे लिए सवाल यह था कि वे वोट किसे देंगे? इन्हीं पूंजीवादी दलों में से ही किसी एक को? तीसरा अनुभव मेरा इलाहाबाद का है, जहाँ मैंने जनता की भाषा में समाजवादी आन्दोलन को खड़ा करने के लिए मौजूदा वाम शब्दावली को बदलने की बात कही थी, पर किसी ने भी मेरा समर्थन नहीं किया, उन्होंने भी नहीं, जो आज मुझसे बेहद खफा हैं.

20 अक्टूबर   2013

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