शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

राहुल गांधी के नाम एक खुला पत्र
सम्माननीय राहुल जी,
           सादर नमस्कार, जय भीम
           निवेदन करना है कि मेरा नाम कँवल भारती है और मैं एक आंबेडकरवादी और समाजवादी विमर्श का लेखक हूँ. मुझे हिंदी दैनिक अख़बार “अमर उजाला” के 10 अक्टूबर के अंक के जरिये पता चला कि आपने अपने एक कार्यक्रम में संभवत: अलीगढ में कहा था कि ‘यदि आप दलित आन्दोलन को आगे ले जाना चाहते हैं, तो इसके लिए एक या दो दलित नेता काफी नहीं हैं, (बल्कि) लाखों दलित नेताओं की जरूरत पड़ेगी. मायावती ने दलित आन्दोलन पर कब्जा कर लिया है और उन्होंने अपने अलावा किसी अन्य दलित नेता को उभरने नहीं दिया है.’
           निश्चित रूप से आपका बयान स्वागतयोग्य है. इस तथ्य की उपेक्षा नहीं की जा सकती कि मायावती ने देश में क्या, उत्तर प्रदेश में भी किसी दलित नेता को उभरने नहीं दिया, जो अपनी क्षमता और योग्यता से उभरे भी, तो उन्होंने उनको भी पार्टी से निकाल कर खत्म कर दिया. यह एक ऐसी पार्टी की वास्तविकता है, जिसका जन्म कांशीराम के सामाजिक आन्दोलनों से हुआ है. यदि सामाजिक आन्दोलनों से निकली हुई कोई बहुजन-हित की पार्टी लाखों-हजारों की बात तो दूर, एक दर्जन दलित नेता भी पैदा नहीं कर सके, तो इसका यही कारण हो सकता है कि अब सामाजिक और लोकतान्त्रिक आन्दोलन उसके सरोकारों में नहीं रह गये हैं. यह दलित आन्दोलन के लिए अवश्य ही चिंताजनक स्थिति है.
           लेकिन मैं आपके समक्ष यहाँ यह प्रश्न रखना चाहता हूँ कि दलित आन्दोलन और दलित-समस्या को लेकर कांग्रेस के भीतर भी कोई गम्भीर चिंता नहीं देखी जाती है. सामाजिक और लोकतान्त्रिक आन्दोलनों से वह भी उतनी ही दूर है, जितना कि बहुजन समाज पार्टी दूर है. कांग्रेस ने कहाँ लाखों दलित नेता पैदा किये? उसने कहाँ रेडिकल दलित नेतृत्व उभारा? अगर कांग्रेस ने ज़मीन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ जुड़कर दलित आन्दोलन को आगे बढ़ाने में रूचि ली होती, तो मायावती को ज़मीन कहाँ मिल पाती? तब क्या कांग्रेस उत्तरप्रदेश में सत्ता से उखड़ती?
           मान्यवर, नेतृत्व दो प्रकार का होता है— एक रेडिकल और दूसरा स्वतन्त्र, जो व्यक्तिवादी और अवसरवादी हो सकता है. इस दूसरे नेतृत्व से बहुत ज्यादा अपेक्षा नहीं की जा सकती. लेकिन कांग्रेस ने इसी दूसरे दलित नेतृत्व से संबंध ज्यादा बनाये. अपने स्वार्थ के लिए कांग्रेस में यह नेतृत्व स्वामिभक्ति के साथ हमेशा ‘यस मैन’ की भूमिका में रहा और दलित सवालों के प्रति अपनी आँखें मूंदे रहा. इसने अत्याचार, दमन और शोषण के मुद्दों पर न कांग्रेस के भीतर आवाज़ उठायी और न बाहर.
           किन्तु, रेडिकल नेतृत्व समाज में परिवर्तन के लिए काम करता है. उसकी ज़मीन सामाजिक आन्दोलनों की ज़मीन होती है. वह अत्याचार, दमन और शोषण के खिलाफ आवाज उठाता है और जनपक्षधरता की राजनीति करता है. मान्यवर, मुझे कहने दीजिये कि ऐसे रेडिकल दलित नेतृत्व को कांग्रेस ने कभी महत्व नहीं दिया. पूंजीवादी राजनैतिक सत्ताएं ऐसी रेडिकल शक्तियों से भयभीत रहती हैं, और कांग्रेस भी. आंबेडकरवादी आन्दोलनों के ऐसे बहुत से रेडिकल दलित नेताओं को कांग्रेस ने अपने भीतर शामिल किया. लेकिन अफ़सोस ! उसने उनका विकास नहीं किया, न उनके नेतृत्व का लाभ उसने उठाया, वरन उस नेतृत्व को खत्म करने की रणनीति को अंजाम दिया. बीपी मौर्य जैसे कितने ही दलित नेता कांग्रेस की इस रणनीति का शिकार होकर खत्म हो गये, रिपब्लिकन पार्टी (RPI) का सारा रेडिकल नेतृत्व कांग्रेस ने ही खत्म किया, जिसके ताज़ा शिकार रामदास अठावले हुए, जिन्हें अंततः अपने वजूद को बचने के लिए शिव सेना की शरण में जाना पड़ा. क्यों? क्या इस प्रश्न पर आप विचार करना चाहेंगे?
            
           मान्यवर, यह प्रश्न मैं आपके समक्ष इसलिए रख रहा हूँ कि कांग्रेस में  आप एक स्वतन्त्र विमर्शकार के रूप में जाने जाते हैं. अनेक मुद्दों पर आपने अपनी पार्टी के विरुद्ध जाकर अपनी राय व्यक्त की है. और अभी हाल में दागी मंत्रियों को बचाने के लिए कांग्रेस द्वारा लाया गया अध्यादेश आपके ही जोरदार हस्तक्षेप से कानून नहीं बन सका. मान्यवर, दलितों में लाखों दलित नेता मौजूद हैं, जो समाज में परिवर्तन के लिए काम कर रहे हैं. वे भारत की राजनीति में एक सार्थक हस्तक्षेप करना चाहते हैं. पर कांग्रेस में दलित नेतृत्व के दमन के पुराने इतिहास को देखते हुए वे कांग्रेस को अपने शत्रु के रूप में देखते हैं. क्या आप इस स्थिति को बदलने की कोशिश करेंगे? क्या कांग्रेस से जुड़ने वाले रेडिकल दलित नेतृत्व को आप यह भरोसा दिला सकते हैं कि वह अपनी सामाजिक और लोकतान्त्रिक ज़मीन के साथ आपकी पार्टी में अन्त तक चल सकेगा?
           मान्यवर, मैं यह कहने का साहस इसलिए कर रहा हूँ कि जिस दिन आप रामपुर आये थे, उससे एक दिन पहले अर्थात 8 अक्टूबर को केन्द्रीय मानव संसाधन राज्यमंत्री माननीय जितेन्द्र प्रसाद जी ने रामपुर में मुझे कांग्रेस से जोड़ा था, या कहिये मुझे कांग्रेस में शामिल किया था. हालाँकि कांग्रेस में मेरी विधिवत ज्वाइनिंग नहीं हुई है, पर यह हो भी सकती है और नहीं भी, यह इस गारन्टी पर निर्भर करता है कि दलित नेतृत्व पर कांग्रेस का वर्तमान रुख अपने इतिहास को दोहरायेगा या उसे ख़ारिज करेगा?

आपके प्रति ससम्मान.
आपका
कँवल भारती
12-10-2013    
               
प्रतिष्ठा में ,
माननीय श्री राहुल गांधी
कांग्रेस उपाध्यक्ष

नयी दिल्ली 

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