मंगलवार, 15 अप्रैल 2014


श्रीमती ओमप्रकाश वाल्मीकि का बडबोलापन

(कँवल भारती)

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में ओमप्रकाश वाल्मीकि की स्मृति में 14-15 अप्रेल को दो दिन का सेमिनार हुआ, जिसमें संयोग से मैं भी एक सत्र का अध्यक्ष था. अंतिम सत्र में श्रीमती चंद्रकला वाल्मीकि ने अपने वक्तव्य में कहा कि कुछ लोग ओमप्रकाश वाल्मीकि का विरोध कर रहे हैं, उनके जीते जी किसी ने उनका विरोध करने की हिम्मत नहीं की. उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोगों ने मेरे बारे में (यानि श्रीमती वाल्मीकि के बारे में) भी लिखा है. क्या लिखा है? यह तो उन्होंने नहीं बताया, पर बोलीं कि वाल्मीकि जी ने मुझे पूरी छूट दी थी. मैं भगवान् को मानती हूँ, पूजा करती हूँ और मन्दिर भी जाती हूँ. पर उन्होंने मुझे कभी नहीं रोका. उन्होंने यह भी कहा कि कुछ लोग मेरे घर शोक व्यक्त करने आये थे या मेरे घर की कहानी जानने. उन्होंने अंत में धमकाने के अंदाज़ में कहा कि मैं अभी मरी नहीं हूँ, मैं उनकी भी पोल खोल दूंगी. यह सारी भड़ास उनकी मेरे ऊपर थी. पर वह इतनी डरपोक निकलीं कि अपनी बात कहकर तुरंत भाग खड़ी हुईं, एक मिनट भी नहीं रुकी. अगर वह वहां रुकती, तो मैं उन्हें बताता कि बिना नाम बताये बात करना सबसे बड़ी कायरता है.

मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि ज्यादा बडबोलापन अच्छा नहीं होता है. वाल्मीकि कोई खुदा नहीं थे, लेखक थे और उनमें बहुत सारी कमजोरियां थीं. वह भूल गयीं, जब कुरुक्षेत्र में उनके सामने ही रतनकुमार सांभरिया ने कहा था कि वाल्मीकि जी से तो कहानी लिखना ही नहीं आती और उन्हें दलित लेखक कहने में भी शर्म आती है. वह भूल गयीं, संजीव खुदशाह ने वाल्मीकि जी पर साहित्यिक चोरी का आरोप लगाया था और उस विवाद को शांत करने में मैंने पहल की थी. उन्होंने अपनी आस्तिकता और पूजा पाठ को स्त्री स्वाधीनता की आड़ में ढकने की कोशिश की है. पर उन्हें शर्म आनी चाहिए कि जो स्त्री एक घर में रहकर और उनके साथ देश भर में घूम कर भी वाल्मीकि जी के विचारों को नहीं समझ सकी, उसे उनके काम को भी आगे बढ़ाने का हक नहीं है. जो स्त्री खुले आम कहती थी कि मैं वाल्मीकि जी के विचारों से सहमत नहीं हूँ, वह अब किस मुंह से उनके विचारों का समर्थन करेंगी? मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि वाल्मीकि जी में जाटव-विरोध कूट-कूट कर भरा था, और इसीलिए वे अपनी जाति-बिरादरी के लोगों तक सिमटकर कर रह गये थे.

अंत में मैं उन्हें चुनौती देता हूँ कि जैसा उन्होंने पोल खोलने की बात की है, खोलकर दिखाएँ. और जितने भी उनके पास मेरे या किसी अन्य के खिलाफ सुबूत हों, वह सब सामने रखें. और यह भी वह अच्छी तरह समझ लें कि मेरे जैसे व्यक्ति ने वाल्मीकि जी की आलोचना उनके जीवनकाल में ही की थी.

(15 अप्रेल 2014, शिमला)  

कोई टिप्पणी नहीं: