गुरुवार, 12 जुलाई 2012

kabir aur bhakti


कबीर और भक्ति
कँवल भारती
हजारी प्रसाद दिवेदी   के बाद कबीर को विकृत  करने का आपराधिक  काम पुरुषोत्तम अग्रवाल 
ने किया है. दलित मूल्यांकन के विरोध में उन्होंने कबीर को सगुण रंग में इस क़दर रंग दिया  है
कि उनकी सारी  क्रांति चेतना  नष्ट कर दी है. क्या कबीर भक्त थेआइये यह जानने के लिए
उनके अध्यात्म को समझें.
कबीर  तीन कारणों से भक्त नहीं हो सकते. पहला कारण -- भक्ति के लिए ईश्वर की मूर्ति चाहिए.
कबीर के राम निर्गुण हैंजिनकी मूर्ति  नहीं बनाई जा सकती. दूसरा कारण -- भक्ति के पीछे 
भक्त की मोक्ष, अर्थात पापों से  मुक्ति की कामना होती है. उसकी परलोक सुधर जाने  और स्वर्ग
में जाने की भावना होती है.  कबीर का विश्वास न मोक्ष में है, न स्वर्ग में है,  न परलोक में है 
और न मुक्ति  में है. उनके यहाँ लोक ही सत्य है और कर्म (जीवन संघर्ष ) ही सहज समाधि है.
तीसरा मुख्य कारण यह है कि भक्ति के लिए 'भक्त' और 'ईश्वर' इन दो का अस्तित्व होना
जरुरी है. लेकिन कबीर के यहाँ दो यानि द्वैत  की अवधारणा ही नहीं है. वे साफ़ कहते हैं--
'राम कबीरा एक हैं दूजा कबहूँ न होए'. वर्ण व्यवस्था, जातिभेद और ऊँचनीच का सारा दर्शन
जाल इसी द्वैत से पैदा हुआ है.
वास्तव में कबीर के निर्गुण दर्शन से ब्राहमणवाद इसलिए  भयभीत है, क्योंकि उसकी विशेषताएं 
(स्थापनाएं ) ब्राहमणवाद  के लिए घातक हैं. ये विशेषताएं चार हैं-- (१) निर्वैर, (२) सबकी सामान
उत्पत्ति का सिद्धांत; (३) विवेकवाद, और (४) प्रेम.
¼26 twu 2012½

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