आरएसएस को
धर्मनिरपेक्षता और कार्पोरेट को समाजवाद रास नहीं आ रहा
(कँवल भारती)
विश्व हिन्दू
परिषद (विहिप), जिसे कायदे से ‘अलकायदा का हिन्दू संस्करण कहना चाहिए, बयान दे रहा है कि वह पचास लाख लोगों को हिन्दू
बनाकर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाएगा। यह बयान विहिप के आक्रामक नेता प्रवीण
तोगडि़या का है, जो पश्चिम बंगाल
में आगामी दस सालों में ईसाई मिशनरियों के प्रभाव वाले आदिवासी इलाकों में पचास
लाख लोगों की ‘घर वापसी’
कराने का ऐलान कर रहे हैं। उन्होंने तथाकथित
बंगलादेशी मुसलमानों के खिलाफ भी जहर उगला और उनके सामाजिक बहिष्कार की बात भी
कही। सवाल है कि क्या हिन्दू राष्ट्र का निर्माण इतना आसान है, जो पचास लाख लोगों को हिन्दू बनाने से हो जाएगा?
जिस हिन्दू राष्ट्र का निर्माण स्वामी
श्रद्धानन्द का ‘शुद्धि आन्दोलन’
नहीं कर सका था, उसे संघपरिवार का ‘घर वापसी’ कार्यक्रम कैसे
कर सकता है? ये मूर्खानन्द
समझते हैं कि हिन्दुओं की संख्या बढ़ने से हिन्दू एक राष्ट्र बन जाएॅंगे। लेकिन वे
जानते नहीं या जानना नहीं चाहते कि हिन्दुओं को जो चीज एक राष्ट्र नहीं बना सकती,
वह जाति-प्रथा है। जब तक हिन्दू समाज में
जाति-प्रथा रहेगी, तब तक हिन्दू कभी
एक राष्ट्र नहीं हो सकते। जब हिन्दू एक राष्ट्र नहीं हो सकते, तो फिर भारत हिन्दू राष्ट्र कैसे बन सकता है?
अगर संघपरिवार चाहता है कि हिन्दू एक राष्ट्र
बनें, तो उसे ‘घर वापसी’ की जगह जाति-प्रथा-उन्मूलन का आन्दोलन चलाना चाहिए। इसके
लिए हिन्दुओं की संख्या बढ़ाने की जरूरत नहीं है, बल्कि उनकी एकात्मता में वृद्धि करने की जरूरत है। लेकिन
उनका ‘घर वापसी’ का कार्यक्रम असल में जाति-प्रथा को जीवित रखने
का ही कार्यक्रम है। इसका मतलब है कि जो आदिवासी और दलित जातियों के लोग ईसाई या
मुसलमान बन गए हैं, उन्हें वापस उन्हीं
जातियों में लाया जाए, जहाॅं से वे गए
थे। यानी, यदि कोई वाल्मीकि या चमार
ईसाई या मुसलमान बन गया है, तो उसे वापस
वाल्मीकि और चमार जातियों में लाना ही संघपरिवार का ‘घर वापसी’ कार्यक्रम है।
इससे यह आसानी से समझा जा सकता है कि वे जाति-प्रथा को तोड़ना नहीं चाहते, बल्कि उसे तोड़कर जाने वाले लोगों की ‘घर वापसी’ कराकर ‘जाति-विरोधियों’
को चेतावनी दे रहे हैं।
दरअसल ‘धर्मनिरपेक्षता’ संघपरिवार को रास नहीं आ रही है और ‘समाजवाद’ कारपोरेट को रास
नहीं आ रहा है। यद्यपि समाजवाद अब किसी सरकार की कार्य-योजना में नहीं है, पर कम से कम संविधान की प्रस्तावना में उसकी
मौजूदगी कारपोरेट को डराती तो है। इसलिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को ये दोनों
ही रास नहीं आ रहे हैं- न धर्मनिरपेक्षता और न समाजवाद। हालांकि प्रधानमन्त्री
नरेन्द्र मोदी ने 28 जनवरी 2015 को नई दिल्ली में राष्ट्रीय कैडेट कोर के
कैडिटों को सम्बोधित करते हुए यह कहा है कि विविधता में ही भारत की एकता है। पर यह
बात वे अपनी मातृ संस्था आरएसएस और सहयोगी दल शिव सेना को क्यों नहीं समझा रहे हैं,
जो भारत को हिन्दू राष्ट्र मानते हुए संविधान
की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’
और ‘समाजवादी’ शब्द हटाने की रट
लगाए हुए हैं?
30 जनवरी 2015
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