चोरी की वकालत करने वाला मंत्री
कँवल भारती
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार के कद्दावर पी.डब्लू.डी. मंत्री शिवपाल यादव ने एटा में जिला योजना समिति की बैठक में अधिकारियों को कहा -- "अगर आप मेहनत करेंगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हैं. बुद्धि लगाओगे. अगर इन्हें मीठा पानी दोगे, तो चोरी कर सकते हो." मतलब यह कि चोरी बुरी नहीं है, अगर वह बुद्धि लगाकर की जाये. यह उस सरकार के मंत्री का बयान है, जिसने प्रदेश में स्वच्छ प्रशासन देने का वादा किया है. जब यह बयान मीडिया में आया तो मंत्री को होश आया कि उन्होंने यह क्या कह दिया. अब वे कह रहे हैं कि उन्होंने तो मजाक में कहा था, उसे गंभीरता से क्यों लिया गया? सवाल यह है कि उन्होंने मजाक में भी चोरी की वकालत क्यों की? मनोविज्ञान का सीधा सा नियम है कि जो मन में होता है, वही जुबान पर आता है. जो चोर नहीं है, वह जुबान से भी चोरी की बात नहीं कह सकता. शिवपाल यादव की निजी सम्पत्ति यही कहानी कहती है कि वह सम्यक कमाई से नहीं जुडी है.
अगर हम अपराध शास्त्र के आधार पर बात करें, तो छोटी मोटी चोरी से ही बड़े अपराध की शुरुआत होती है. जिस छोटी या थोड़ी सी चोरी की बात मंत्री कर रहे हैं, उसे नजरअंदाज करने का मतलब है चोर को डकैती डालने के लिए प्रोत्साहित करना. मंत्री कह रहे हैं कि चोरी करो, पर डकैती मत डालो. पर यह कैसे हो सकता है कि अधिकारी चोरी करने के बाद डकैती न डाले. डकैती रोकने के लिए पहले चोरी को ही रोकना होगा.
यदि अधिकारियों को चोरी करने की बात शिवपाल यादव के बजाय किसी नौकरशाह प्रमुख ने कही होती,तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उसे बर्खास्त जरूर कर दिए होते. पर, यहाँ मामला चाचा का है, वे मुलायम सिंह यादव के भाई हैं. इसलिए उनमें इतना नैतिक साहस कहाँ कि वे उन्हें बर्खास्त नहीं तो निलम्बित ही कर दें.
११ जुलाई २०१२
कँवल भारती
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार के कद्दावर पी.डब्लू.डी. मंत्री शिवपाल यादव ने एटा में जिला योजना समिति की बैठक में अधिकारियों को कहा -- "अगर आप मेहनत करेंगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हैं. बुद्धि लगाओगे. अगर इन्हें मीठा पानी दोगे, तो चोरी कर सकते हो." मतलब यह कि चोरी बुरी नहीं है, अगर वह बुद्धि लगाकर की जाये. यह उस सरकार के मंत्री का बयान है, जिसने प्रदेश में स्वच्छ प्रशासन देने का वादा किया है. जब यह बयान मीडिया में आया तो मंत्री को होश आया कि उन्होंने यह क्या कह दिया. अब वे कह रहे हैं कि उन्होंने तो मजाक में कहा था, उसे गंभीरता से क्यों लिया गया? सवाल यह है कि उन्होंने मजाक में भी चोरी की वकालत क्यों की? मनोविज्ञान का सीधा सा नियम है कि जो मन में होता है, वही जुबान पर आता है. जो चोर नहीं है, वह जुबान से भी चोरी की बात नहीं कह सकता. शिवपाल यादव की निजी सम्पत्ति यही कहानी कहती है कि वह सम्यक कमाई से नहीं जुडी है.
अगर हम अपराध शास्त्र के आधार पर बात करें, तो छोटी मोटी चोरी से ही बड़े अपराध की शुरुआत होती है. जिस छोटी या थोड़ी सी चोरी की बात मंत्री कर रहे हैं, उसे नजरअंदाज करने का मतलब है चोर को डकैती डालने के लिए प्रोत्साहित करना. मंत्री कह रहे हैं कि चोरी करो, पर डकैती मत डालो. पर यह कैसे हो सकता है कि अधिकारी चोरी करने के बाद डकैती न डाले. डकैती रोकने के लिए पहले चोरी को ही रोकना होगा.
यदि अधिकारियों को चोरी करने की बात शिवपाल यादव के बजाय किसी नौकरशाह प्रमुख ने कही होती,तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उसे बर्खास्त जरूर कर दिए होते. पर, यहाँ मामला चाचा का है, वे मुलायम सिंह यादव के भाई हैं. इसलिए उनमें इतना नैतिक साहस कहाँ कि वे उन्हें बर्खास्त नहीं तो निलम्बित ही कर दें.
११ जुलाई २०१२
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